मुनाफाखोरी पर नजर रखने वाली संस्था राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण (एनएए) ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में की गई कटौती से करीब 1.04 करोड़ रुपये का लाभ ग्राहकों को ने देने के लिए टाटा स्टारबक्स को दोषी करार दिया है। एनएए ने कॉफी चेन को मुनाफाखोरी की रकम उपभोक्ता कल्याण निधि में जमा करने का आदेश दिया है। आदेश में कहा गया है कि कंपनी 18 फीसदी ब्याज दर के साथ रकम तीन महीने के भीतर जमा कराए।
टाटा स्टारबक्स, टाटा समूह और वैश्विक कॉफी शृंखला स्टारबक्स के बीच बराबर हिस्सेदारी वाला संयुक्त उद्यम है। जीएसटी परिषद द्वारा रेस्तरां सेवाओं पर कर की दरों को 18 फीसदी से 5 फीसदी किए जाने के बावजूद कंपनी ने विशिष्ट कॉफी उत्पाद के आधार मूल्य में वृद्धि की थी। जीएसटी दरों में कटौती 15 नवंबर 2017 से प्रभावी हो गई थी। इसने उत्पाद के खुदरा विक्रय मूल्य (जीएसटी दर में कटौती से पहले और बाद में) को समान रखा था। जीएसटी परिषद ने इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ दिए बिना दर को घटाकर 5 फीसदी करने का निर्णय लिया था। एनएए ने अपने आदेश में कहा है, ‘यह साबित हो चुका है कि प्रतिवादी (टाटा स्टारबक्स) ने 15 नवंबर, 2017 से 30 जून, 2018 की अवधि के दौरान 1.04 करोड़ रुपये की मुनाफाखोरी की है जबकि कीमतों को कम करके इसका फायदा ग्राहकों को देना था। इनपुट टैक्स क्रेडिट न मिलने के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए कीमत में उपयुक्त कमी करने की आवश्यकता थी जो कंपनी ने नहीं किया।’
जीएसटी के तहत मुनाफाखोरी-रोधी नियमों के अनुसार कीमतों में कटौती के जरिये इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ प्राप्तकर्ता को दिया जाना चाहिए था। चूंकि उपभोक्ताओं की पहचान नहीं की जा सकती है, इसलिए मुनाफाखोरी की रकम को केंद्र और राज्यों के उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा करना होगा।
टाटा स्टारबक्स के प्रवक्ता ने कहा, ‘एक जिम्मेदार कंपनी के रूप में टाटा स्टारबक्स फैसले का अनुपालन करेगी। टाटा स्टारबक्स कानूनी विकल्प तलाशना चाहती है क्योंकि उसने जीएसटी ढांचे में किए गए संशोधन के अनुसार कानून का पालन किया है।’ चूंकि मुनाफाखोरी-रोधी कानून के तहत दंड संबंधी प्रावधान जनवरी में लागू हुए थे, इसलिए टाटा स्टारबक्स पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि यह मामला पहले के समय से संबंधित है।
