मोदी रबर की सहयोगी कंपनी मोदी टायर ने जर्मनी की कॉन्टिनेंटल टायर्स के साथ अपने तकनीकी और ब्रांडिंग समझौते को पुनर्जीवित किया है।
वी के मोदी के नियंत्रण वाली कंपनी मेरठ के पास मोदीनगर संयंत्र पर उत्पादन फिर से शुरू किए जाने के लिए तकरीबन 300 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। विश्व की चौथी सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी कॉन्टिनेंटल के साथ मोदी टायर ने पहले भी एक करार किया था जो 2001 में संयंत्र बंद हो जाने के बाद समाप्त हो गया।
श्रमिकों के गतिरोध और मुकदमेबाजी के कारण इस संयंत्र को बंद कर दिया गया था। नए समझौते के तहत निर्मित टायरों को कॉन्टिनेंटल ब्रांड के अधीन बेचा जाएगा। संयंत्र के बंद होने से पहले कंपनी के टायरों को मोदी कॉन्टिनेंटल के तहत बेचा जाता था। नए साझा उपक्रम में जर्मन टायर कंपनी की ओर से किसी तरह का निवेश नहीं किया जाएगा।
हालांकि कॉन्टिनेंटल का जेके टायर इंडस्ट्रीज और मेट्रो टायर्स जैसी भारतीय टायर निर्माण कंपनियों के साथ तकनीकी गठजोड़ रहा है, लेकिन प्रेस नोट 1 के प्रावधान के तहत मोदी रबर को इन कंपनियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करना जरूरी है।
कंपनी के अधिकारियों ने कहा, ‘इन कंपनियों से एनओसी प्राप्त कर लिया गया है और इसे मंजूरी के लिए परियोजना मंजूरी बोर्ड (पीएबी) को भेज दिया गया है।’ पीएबी की मंजूरी एक महीने में मिल जाने की संभावना है। यह मंजूरी हासिल हो जाने के बाद टायरों का वाणिज्यिक उत्पादन शुरू हो जाएगा।
शुरू में कंपनी 11 लाख ट्रक टायर और टयूब हर साल बनाएगी। संयंत्र में रिपेयर, अपग्रेडेशन और कम्प्यूटरीकरण का कार्य पूरा हो चुका है। कंपनी ने कच्चे माल पर काम शुरू कर दिया है और मार्केटिंग नेटवर्क को संयंत्र में एक बार फिर से बहाल कर दिया गया है। 2001 से पहले मोदी रबर 14 फीसदी से भी अधिक की बाजार भागीदारी वाली टायर कंपनी थी।
करार की कहानी
कॉन्टिनेंटल के साथ पहला गठजोड़ 2001 में संयंत्र के बंद हो जाने के बाद समाप्त हो गया था।
इस समझौते के तहत निर्मित टायर मोदी कंटीनेंटल नहीं बल्कि कंटीनेंटल ब्रांड के तहत बेचे जाएंगे।