केरल के जिन परंपरागत करघों में अब तक केवल सूती कपड़े तैयार किये जाते थे उनमें जल्द ही रेशमी कपड़े भी तैयार किए जा सकेंगे। इस दिशा में केरल हैंडलूम डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (हैनवीव) योजनाएं तैयार कर रही है।
हैनवीव के प्रबंध निदेशक बी अरुल सेलवान ने बताया, ‘केरल के पल्लकड़ जिले में बुनाई कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है ताकि वे रेशमी साड़ियां तैयार कर सकें। इन साड़ियों में 100 फीसदी प्राकृतिक रेशम का इस्तेमाल किया जाएगा। हमारी योजना है कि बाजारों में असली रेशम साड़ियां पेश की जाएं जिन्हें हमारे बुनकरों ने इन परंपरागत करघों पर खुद से तैयार किया हो।’
उन्होंने कहा कि पल्लकड़ में बुनकरों को करघों पर रेशमी साड़ियां तैयार करने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बुनकरों ने पिछली बार ओनम के उत्सव पर सिल्क साड़ियां बनाई थीं।
इन साड़ियों को काफी पसंद किया गया था।इंटीग्रेटेड हैंडलूम क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम के अधीन पल्लकड़ हथकरघा बुनकरों की योजना है कि उन्हें बड़े पैमाने पर रोजगार मिल सके।
उन्होंने कहा, ‘क्लस्टर डेवलपमेंट योजना के तहत केंद्र सरकार ने 60 लाख रुपये को मंजूरी दी है। इस रकम से हैनवीव को रेशमी परियोजना को पूरा करने में मदद मिलेगी।’
सेलवान ने कहा कि रेशमी कपड़ों को बाजार में अच्छा रिस्पॉन्स मिलता है और इसी को ध्यान में रखते हुए है हैनवीव ने रेशमी वस्त्रों की ओर ध्यान देना शुरू किया है।
उन्होंने कहा, ‘खास बात यह है कि यहां जिन रेशमी साड़ियों को बनाया जाएगा वे 100 फीसदी प्राकृतिक रेशम से बनी होंगी। ये साड़ियां प्रिंटेड भी होंगी और एक रंग वाली टाई ऐंड डाई भी।
हर साड़ी की कीमत करीब 2,000 रुपये होगी। कोई भी व्यक्ति जो 100 फीसदी असली रेशमी साडी ख़रीदना चाहता है उसके लिए यह कीमत बहुत अधिक नहीं है।’
उन्होंने कहा कि इससे बुनकरों को भी बहुत फायदा होगा क्योंकि फिलहाल वे जितना कमा रहे हैं, रेशमी साड़ियां तैयार करने के बाद उनकी कमाई में खासी बढ़ोतरी हो जाएगी।हैनवीव की योजना आगे चलकर रेशम के दूसरे परिधान बनाने की भी है।
सेलवान ने कहा, ‘रेशमी साड़ियों के बाद हम चाहते हैं कि लड़कियों के लिए रेशम के शर्ट और टॉप भी बनाएं।’ पल्लकड़ और तिरुअनंतपुरम में हथकरघे कमोबेश एक ही तरह के हैं इसलिये हैनवीव की योजना है कि कुछ समय बाद तिरुअनंतपुरम में भी सिल्क के कपड़े बनाए जाएं।