आगामी 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए करीब 1.75 लाख करोड़ रुपये (90 फीसदी से अधिक) की जंग में वोडाफोन आइडिया (वीआईएल) की कीमत पर रिलायंस जियो और भारती एयरटेल अपनी बाजार हिस्सेदारी और राजस्व को मजबूती देने के लिए दमदार स्थिति में हैं। अधिकतर विश्लेषकों ऐसा अनुमान जाहिर किया है।
नोमुरा रिसर्च का कहना है कि ऐसा लगता है कि भारत के दूरसंचार क्षेत्र में दो ही कंपनियों का वर्चस्व रहेगा। हालांकि यह समय ही बताएगा कि भारतीय दूरसंचार क्षेत्र द्विध्रुवीय होगा अथवा नहीं। लेकिन आगामी 5जी नीलामी में वोडाफोन आइडिया की भूमिका काफी सीमित दिखने के आसार हैं। वह संभवत: अपने प्रमुख सर्किल पर ही ध्यान केंद्रित करेगी। उसे अपना 4जी कवरेज बढ़ाने और 5जी में निवेश करने के लिए बहुप्रतीक्षित 20,000 करोड़ रुपये जल्द से जल्द जुटाने की आवश्यकता है।
शुरू में यह स्पष्ट नहीं था कि अदाणी समूह भी 5जी के बहाने मोबाइल टेलीफोनी में दस्तक दे देगा अथवा फिलहाल उसकी भूमिका एंटरप्राइज क्षेत्र तक सीमित रहेगी। यूबीएस का कहना है कि वोडाफोन आइडिया के हाई-एंड ग्राहक 5जी सेवाओं के अभाव में अन्य सेवा प्रदाताओं की ओर रुख कर सकते हैं। साल 2020 और 2022 के बीच एयरटेल के पोस्टपेड ग्राहकों की संखया में 30 लाख की बढ़ोतरी हुई। जाहिर तौर पर वोडाफोन आइडिया से ग्राहकों ने एयरटेल की ओर रुख किया होगा।
वैश्विक रुझानों से पता चलता है कि 5जी सेवाएं लॉन्च होने के 12 से 18 महीनों के दौरान प्रति उपयोगकर्ता औसत राजस्व (एआरपीयू) में 10 फीसदी (चीन) से 20 फीसदी (हॉन्ग कॉन्ग) के दायरे में वृद्धि हुई। भारत में कुछ साल पहले शुरू हुई 4जी सेवाओं के मुकाबले यह बिल्कुल अलग है क्योंकि उस दौरान एआरपीयू में उल्लेखनीय गिरावट आई थी। जहां तक 5जी का सवाल है तो इससे जियो और एयरटेल को अधिक राजस्व मिल सकता है।
दूरसंचार कंपनियों के लिए मुख्य परीक्षा 3.5 गीगाहर्ट्ज बैंड (3300-3630) में स्पेक्ट्रम हासिल करने को लेकर होगी। उदाहरण के लिए, 3500-3600 बैंड हासिल करने वाली कंपनी मजबूत स्थिति में होगी, क्योंकि उसका अन्य दूरसंचार कंपनियों के साथ इसे साझा करने को लेकर कोई दखल नहीं होगा। 5जी के लिए आवेदन आमंत्रित करने की प्रक्रिया के तहत यदि 3.5 गीगाहर्ट्ज में कुल स्पेक्ट्रम नीलामी सभी कंपनियों के बीच 300 मेगाहर्ट्ज तक ररहती है तो इसे 3600 मेगाहर्ट्ज से निर्धारित किया जाएगा और इसकी शुरुआत उस बोलीदाता से होगी, जिसका रैंक यानी स्थान सबसे ऊपर हो। इस रैंक का निर्धारण जटिल प्रक्रिया के तहत किया जाएगा जिसमें यह सब शामिल होगा कि दूरसंचार कंपनी ने कैसे और कितनी बार प्रत्येक राउंड में कीमतें बढ़ाईं।
सबसे ज्यादा बोली लगाने वाली कंपनी को सबसे अच्छा बैंड 3600-3500 मिलेगा। लेकिन दूसरे बोलीदाता (एयरटेल के रूप में) को नैविक सिस्टम से 3400-3500 बैंड में समस्या का सामना करना पड़ेगा, जो 3.4 और 3.425 गीगाहर्ट्ज के बीच 25 मेगाहर्ट्ज का इस्तेमाल कर रहा है।
अंतरिक्ष विभाग ने सिस्टम के पास किसी माइक्रो साइट के लिए 350-1400 किलोमीटर के बफर जोन का संकेत दिया है। एयरटेल ने संबद्ध गणना के आधार पर नियामक को बताया है कि भले ही वह 130-किलोमीटर का बफर बनाए हुए है, लेकिन देश की आबादी के 7 करोड़ लोगों, 600 कस्बों और बफर जोन के 60,000 गांवों को कवर करने में सक्षम नहीं होगी। इसी तरह जहां तक 3300-3400 मेगाहर्ट्ज बैंड का सवाल है, नौसेना देश की समुद्रतटीय लाइन के साथ साथ इसका इस्तेमाल करती है, और साथ ही 100 किलोमीटर का बफर बनाए रखा जाएगा। इस समस्या के समाधान के प्रयास किए जा रहे हैं।
अन्य समस्या यह देखना है कि क्या रिलायंस जियो 700 मेगाहर्ट्ज बैंड हासिल करती है या नहीं, जो 5जी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जरूरी है। लेकिन यह पिछली दो नीलामियों में बिका नहीं था, क्योंकि इसकी आधार कीमत अधिक थी, जिसमें इस नीलामी में 40 प्रतिशत तक की कमी की गई है। वहीं जियो को इसे खरीदने के लिए नकदी की जरूरत होगी। उसे 10 मेगाहर्ट्ज के लिए अतिरिक्त 39,270 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।
लेकिन राय अलग अलग है। एक विश्लेषक का कहना है कि जियो के पास 800 मेगाहर्ट्ज बैंड में 10 मेगाहर्ट्ज था, जिसे उसने बड़े पैमाने पर मार्च 2021 की नीलामी में खरीदा था। इसका सिर्फ आधा हिस्सा ही वह 4जी सेवाओं के लिए इस्तेमाल करती है। विश्लेषक ने कहा कि उनकी पिछली चर्चाओं के आधार पर यह पता चला था कि कंपनी 5जी सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम आरक्षित रखेगी।
