अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश जारी कर इस साल के अंत तक गैर-आव्रजन वीजा को निलंबित कर दिया है। भारतीय आईटी कंपनियों को इससे झटका लग सकता है लेकिन जानकारों का कहना है कि उत्तरी अमेरिका क्षेत्र में ट्रंप के इस आदेश से अस्थायी कर्मचारियों की मांग बढ़ सकती है। यह मांग ऐसे समय में दिख सकती है जब उपठेकेदारों की मांग में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है।
ट्रंप प्रशासन के इस आदेश से मैनपावर ग्रुप, रैंडस्टैड, एडेको, केली सर्विसेज, एलेगिस ग्लोबल सॉल्यूशंस आदि उपठेकेदार कंपनियों को फायदा होने की उम्मीद है। इसके अलावा ट्रंप के इस आदेश से कर्मचारी समाधान उपलब्ध कराने वाली उन तमाम कंपनियों को भी फायदा होगा जो अमेरिका में प्रौद्योगिकी कंपनियों को कुशल कर्मचारियों की आपूर्ति करती हैं।
सीआईईएल एचआर सर्विसेज के निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा, ‘अमेरिका में इंजीनियरों की आपूर्ति करने वाले अधिकतर उपठेकेदारों की उपयोगिता स्तर में पिछले तीन महीने के दौरान करीब 30 फीसदी की गिरावट आई थी। मौजूदा प्रतिबंध के कारण आईटी कंपनियां अपने कर्मचारियों को अमेरिका नहीं भेज पाएंगी और इसलिए इस साल उपठेकेदारों के लिए मांग बढ़ सकती है।’ उन्होंने कहा, ‘ठेकेदारों (अनुबंधा आधारित कर्मचारी) के लिए अधिकांश मांग उन मझोली और छोटी आईटी कंपनियों से आएगी जिनके पास अमेरिका में अपनी परियोजना के निष्पादन के लिए पर्याप्त कर्मचारी उपलब्ध नहीं हैं।’
अधिकतर भारतीय आईटी सेवा कंपनियों की कुल कर्मचारी लागत में उपठेकेदारों की हिस्सेदारी 10 से 15 फीसदी होती है। बाजार की अग्रणी कंपनी टीसीएस के लिए उपठेकेदारों की लागत वित्त वर्ष 2020 में उसकी कुल कर्मचारी लागत का करीब 13 फीसदी रही जबकि विप्रो के लिए यह आंकड़ा 22 फीसदी रहा। इन्फोसिस ने इस दौरान अपनी कुल कर्मचारी लागत का करीब 12 फीसदी रकम उपठेकेदारों पर खर्च की।
विशेषज्ञों के अनुसार, बड़ी आईटी कंपनियों ने स्थानीय स्तर पर काफी नियुक्तियों के जरिये अपना कर्मचारी पिरामिड पहले से ही तैयार कर रखा है। इसलिए ट्रंप प्रशासन द्वारा गैर-आव्रजन वीजा को निलंबित किए जाने के बावजूद अनुबंध आधारित कर्मचारियों पर उनकी निर्भरता नहीं बढ़ेगी। इन्फोसिस, विप्रो, एचसीएल टेक्नोलॉजिज सहित अधिकतर बड़ी आईटी सेवा कंपनियों में स्थानीयकरण का अनुपात 60 फीसदी से अधिक है।
