हुआवे मंझधार में फंस गई है। भारत में उसे चौतरफा प्रतिबंधों से जूझना पड़ रहा है जिससे उसके लिए इस मंझधार से निकलना कठिन हो गया है। भारतीय बाजार में अपनी मौजूदगी दर्ज करने के 20 साल बाद बीएसएनएल की आगामी 4जी निविदा में भाग लेना उसके लिए मुश्किल होगा। इसके अलावा 5जी के लिए ऑपरेटरों के साथ परीक्षण करने की भी उसे संभवत: अनुमति नहीं होगी जिसके लिए वह पहले ही आवेदन कर चुकी है। यदि कंपनी के करीबी सूत्र सरकार के संकेतों को समझ रहे होंगे तो वह इसे समझ गई होगी।
दूरसंचार गियर और मोबाइल उपकरण बनाने वाली विश्व की इस सबसे बड़ी कंपनी को इससे काफी परेशानी हो सकती है। भारतीय बाजार में वह अब तक करीब 2 अरब डॉलर का निवेश कर चुकी है। साथ ही उसने बेंगलूरु में अपने अनुसंधान एवं विकास केंद्र की स्थापना पर 20 करोड़ डॉलर खर्च किए हैं। यह चीन के बाहर उसका सबसे बड़ा और प्रमुख केंद्र है जहां कई प्रमुख प्रौद्योगिकी के विकास पर काम चल रहा है।
हुआवे भारत से अपने सबसे बड़े वैश्विक सर्विस सेंटर का भी परिचालन करती है जहां से वह 30 से अधिक देशों में दूरसंचार नेटवर्क के परिचालन की देखरेख करती है। इन सब निवेश की देखरेख करने के लिए उसके पास करीब 6,000 कर्मचारी मौजूद हैं। इसमें से करीब 4,000 कर्मचारियों को केवल आरऐंडडी में लगाया गया है जबकि वैश्विक सर्विस सेंटर में उसके करीब 1,200 कर्मचारी तैनात हैं।
हालांकि भारत में हुआवे का कारोबार चीन में उसके कारोबार से बुनियादी तौर पर अलग है। चीन में उसके कारोबार में उपभोक्ता कारोबार की हिस्सेदारी काफी अधिक है जिसमें मोबाइल उपकरण भी शामिल है। इससे कंपनी 54 फीसदी राजस्व अर्जित करती है और यह उसके उपकरण अथवा करियर कारोबार के मुकाबले काफी बड़ा है। इसके विपरीत भारत में कंपनी का अधिकांश राजस्व उसके दूरसंचार उपकरण एवं करियर सेवाओं से आता है।
भारतीय बाजार से प्राप्त राजस्व में उसके मोबाइल कारोबार का योगदान मामूली है। भारत में कंपनी दो ब्रांडों- हुआवे और ऑनर- के तहत मोबाइल फोन की बिक्री करती है। हुआवे 60,000 रुपये की शुरुआती कीमत वाला प्रीमियम ब्रांड है जबकि ऑनर की शुरुआती कीमत 10,000 रुपये है। कंपनी ने पांच साल पहले इन्हें भारत में लॉन्च किया था लेकिन ग्राहकों के बीच उसका कोई खास आकर्षण नहीं दिखा। परिणामस्वरूप बाजार हिस्सेदारी के लिहाज से ये स्मार्टफोन शीर्ष पांच की सूची में भी शामिल नहीं हैं। बाजार हिस्सेदारी पर नजर रखने वाली अनुसंधान एजेंसी काउंटरपॉइंट के आंकड़ों से इसका खुलासा होता है।
हुआवे ने कुछ साल पहले एंटरप्राइज कारोबार भी शुरू किया था जो शुरुआती तेजी के बाद सुस्त पड़ गया। लेकिन 4जी उपकरण क्षेत्र में उसे काफी सफलता मिली। भारती एयरटेल और आइडिया जैसी कंपनियां उसके ग्राहक हैं और उसने अपने इन दोनों ग्राहकों के लिए 5जी पूर्व नेटवर्क तैयार किया है।
ऑपरेटरों का कहना है कि हुआवे ने चीन के बैंकों के साथ करार के जरिये वेंडरों की मदद की है। इससे उन्हें 10 से 15 वर्षों के लिए दीर्घावधि उपकरण उधारी की सुविधा मिलती है खस्ताहाल दूरसंचार कंपनियों के लिए काफी फायदेमंद है। हुआवे का कहना है कि उसने कभी भी कम कीमत के आधार पर अपने उत्पादों की बिक्री नहीं की है। उसने एरिक्शन और नोकिया के साथ तगड़ी प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई जिससे कीमतों में नरमी आई।
उद्योग विश्लेषकों का कहना है कि रिलायंस जियो के आने से पहले हुआवे करीब एक तिहाई 4जी गियर बाजार पर काबिज थी। जबकि शेष बाजार एरिक्शन और नोकिया के पास था। लेकिन सैमसंग के आने और हुआवे को सौदा करने में विफलता के बाद बाजार हिस्सेदारी का समीकरण बदल गया।
