चीन के साथ सोमवार रात झड़प के बाद वहां के उत्पादों से किनारा करने की मांग जोर-शोर से चल रही है। हालांकि ऐसा सोच लेना आसान है, लेकिन करना खासा मुश्किल है। आपके फोन पर अगर ‘मेड इन इंडिया’ लिखा है तो गफलत में न आ जाएं। उसमें काफी कुछ चीन का है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले साल अप्रैल से इस साल फरवरी तक देश में 7.5 अरब डॉलर के पीसीबी और मोबाइल फोन पुर्जों का आयात किया गया। इनमें 45 फीसदी पुर्जे चीन से ही आए।
मोबाइल फोन बनाने वाली अग्रणी देसी कंपनी लावा इंटरनैशनल के हरिओम राय ने कहा,’हम इन पुर्जों के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर हैं। हमारे फोन में इस्तेमाल होने वाले 60 से 80 फीसदी पुर्जे आयात होते हैं और इस आयात में 20 से 50 फीसदी हिस्सेदारी चीन की है।’ कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से आयात पर निर्भरता कम करने का आह्वान किया था और सीमा पर चीन के साथ झड़प के बाद अब वहां के उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर पकड़ सकती है। लेकिन हकीकत यह है कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल उपकरण, वाहन, दवा, दूरसंचार उपकरण,उर्वरक आदि क्षेत्रों में काफी हद तक चीन पर निर्भर है। इतने बड़े पैमाने पर निर्भरता कम करने में भारत को खासा वक्त लग सकता है।
मिसाल के तौर पर वाहन उद्योग की बात करें तो भारत सालाना 17.6 अरब डॉलर के पुर्जे आयात करता है, जिनमें 25-27 फीसदी पुर्जे चीन से आते हैं। वाहन पुर्जा बनाने वालों के संगठन एक्मा के अधिकारी कहते हैं कि चीन पर हमारी निर्भरता ज्यादा है और दूसरे देशों के मुकाबले वहां बहुत कम कीमत पर जरूरी कल-पुर्जे मिल भी जाते हैं। एक प्रमुख कार कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘बीएस 4 से बीएस 6 इंजन पर जाने के लिए आपको तकनीक विकसित करनी होगी। यही काम जल्द करना हो तो चीन जाइए और तकनीक वहां से ले आइए। आपको इलेक्ट्रिक वाहन बनाने हों तो भारत में पुर्जे बहुत कम मिलेंगे और आपको चीन जाना होगा। अचानक मांग बढ़ जाए और वेंडर पुर्जे बनाने के लिए डेढ़-दो साल मांगें तो चीन से आयात कर लीजिए।’
दवा उद्योग की भी यही कहानी है। दवाओं में इस्तेमाल होने रासायनिक तत्वों (एपीआई) और अन्य महत्त्वपूर्ण सामग्री के लिए भारत चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। चीन भी दूसरे देशों के मुकाबले 30 फीसदी कम दाम पर यह सब दे रहा है। बल्क ड्रग इकाई के मालिक और आईडीएमए में बल्क ड्रग समिति प्रमुख योगिन मजूमदार ने कहा, ‘हमें एपीआई और दूसरी अहम सामग्री के लिए चीन पर 65 से 70 प्रतिशत तक निर्भर रहना पड़ता है।’ इतनी अधिक निर्भरता का नुकसान भी हो सकता है। हाल ही में बाजार में विटामिन सी और कुछ आम एंटीबायोटिक दवाओं की कमी हो गई थी क्योंकि चीन में कोविड-19 महामारी की वजह से विनिर्माताओं ने उत्पादन बंद कर दिया था। उर्वरक उद्योग की कहानी भी अलग नहीं है। भारत के कुल डीएपी आयात में 45 फीसदी योगदान चीन का ही है। देश में करीब 13 फीसदी यूरिया आयात भी चीन से ही होता है क्योंकि डीएपी और यूरिया के घरेलू उत्पादक मांग पूरी नहीं कर पाते। इक्रा में समूह प्रमुख रविचंद्रन कहते हैं, ‘पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका या अमेरिका से आयात किया जा सकता है मगर उसकी कीमत 25-30 फीसदी बढ़ जाएगी।’ हालांकि अब चार-पांच सरकारी संयंत्र यूरिया उत्पादन की क्षमता बढ़ा रहे हैं, जिससे आत्मनिर्भरता हो सके।
दूरसंचार उपकरण बनाने वाले कहते हैं कि उनके उद्योग में भी चीन से बड़े पैमाने पर आयात होता है। इसमें हुआवे और जेडटीई जैसी चीनी कंपनियों से होने वाला आयात ही शामिल नहीं है। यूरोपीय कंपनियों से भी आयात होता है, लेकिन उनके कारखाने भी चीन में ही हैं। लेकिन दूरसंचार कंपनियों को इससे कोई एतराज नहीं है क्योंकि चीनी दूरसंचार विनिर्माताओं के साथ मिलकर काम करने वाले चीनी बैंक भारतीय कंपनियों को भी लंबे समय के लिए कर्ज दे देते हैं।
कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स में चीन का दबदबा किसी से नहीं छिप है। अगर आपके घर एलईडी टेलीविजन है तो इस बात के पूरे आसार हैं कि उसमें इस्तेमाल पैनल चीन से आया हो। इसकी वजह यह है कि देश में 80 फीसदी एलईडी पैनल वहीं से मंगाए जाते हैं। टीवी बनाने वाली एक बड़ी कंपनी के आला अधिकारी ने बताया, ‘एलईडी का एक कारखाना लगाने में करीब 38,000 करोड़ रुपये का निवेश हागा। जब तक भारत में बड़े पैमाने पर इनकी जरूरत नहीं पड़ती या भारत इनके निर्यात का अड्डा नहीं बनता तब तक कोई कारखाना नहीं लगाएगा।’ भारत के टीवी उद्योग पर चीन की पकड़ इसी से पता लगती है कि पिछले साल अप्रैल से इस साल फरवरी तक भारत ने वहां से 81,000 करोड़ रुपये से अधिक के टीवी पुर्जे आयात किए।
एयरकंडीशनर जैसे कंज्यूमर ड्यूरेबल उपकरण में 60 फीसदी कीमत कंप्रेसर की होती है। भारत में कंप्रेसर के कारखाने गिनी-चुनी कंपनियों ने ही लगाए हैं, इसलिए करीब 80 फीसदी कंप्रेसर चीन से ही आयात किए जाते हैं। हालांकि कुछ कंपनियां मसलन ब्लू स्टार यहां कारखाना लगाने की तैयारी में हैं। ब्लू स्टार इंडिया के प्रबंध निदेशक बी त्यागराजन का कहना है, ‘स्थानीय विनिर्माण बढ़ाने और आयात के लिए चीन जैसे देश पर निर्भरता घटाने का यह सही वक्त है।’
