नवरत्न कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के खजाने की वजह से ही सरकार देश में बाजार से कम कीमत पर पेट्रोल और डीजल बेच पा रही है।
लेकिन अब 65,000 करोड़ रुपये की कंपनी सब्सिडी का बोझ लंबे समय तक सहने की हालत में नहीं है।?इसकी वजह बाजार की हालत है, जहां कच्चे तेल के दाम घटे हैं, लेकिन लागत में अभी तक कोई कमी नहीं आई है।
ओएनजीसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक आर एस शर्मा से वंदना गोंबर और रक्तिम कोटोकी ने कंपनी केसामने अधिग्रहण के दौरान आने वाली चुनौतियों के बारे में विस्तार से बात की। मुख्य अंश :
जब कच्चे तेल की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 120 डॉलर प्रति बैरल हो गई थीं, तो आपकी कंपनी की प्रति बैरल आय 56 डॉलर से घटकर 46 डॉलर हो गई थी। आपको क्या लगता है, कच्चे तेल के दाम गिरना ही उचित है?
एक तेल उत्खनन कंपनी होने के नाते हम क्यों चाहेंगे कि कच्चे तेल की कीमत घटे?
पिछले 2-3 साल में लागत भी कीमत कई गुना बढ़ी है, ऐसे में हमें कमाई बढ़ाने के नए विकल्प तलाशने पड़ रहे हैं।
यहां तक कि आज भी रिग और उत्खनन में इस्तेमाल की जाने वाली सेवाओं के किराये या उनकी लागत में कोई कमी नहीं आई है।
आपके हिसाब से सब्सिडी बांटने का सही तरीका क्या है?
मैं पहले कह चुका हूं और फिर कह रहा हूं कि मौजूदा हालात के आधार पर फैसला लेने की आदत छोड़नी पड़ेगी।
यह सब्सिडी बांटने का सबसे गैर-पेशेवर रवैया है। सब्सिडी के बारे में सरकार को एक पुख्ता और स्पष्ट योजना बनानी पड़ेगी, जिसमें साफ हो कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत के हिसाब से तेल उत्पादों की कीमत क्या होगी।
चतुर्वेदी आयोग ने इसी आधार पर एक रिपोर्ट पेश की थी, लेकिन अब पता नहीं वह रिपोर्ट कहां पड़ी धूल खा रही है।
तो आप सब्सिडी का कितना भार वहन करने के लिए तैयार हैं?
बिल्कुल नहीं। फिलहाल कच्चे तेल की कीमत 50 डॉलर प्रति बैरल है, ऐसे में हमारे जैसी तेल उत्खनन कंपनी के लिए सब्सिडी का भार वहन करना संभव नहीं है।
चतुर्वेदी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि कच्चे तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल से कम होती है, तो तेल उत्खनन कंपनियों पर सब्सिडी का भार नहीं डाला जाना चाहिए।
तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल ने भी कह दिया है कि वह सब्सिडी का और भार झेलने की हालत में नहीं है। आप भी यही कह रहे हैं। इसका मतलब है कि अब सरकार ही सब्सिडी का पूरा भार उठाए?
बिल्कुल। इस समय सरकार को यही करना चाहिए।
आप पिछले दो साल से लगातार सब्सिडी मामलें में त्वरित फैसले लेने की सरकारी आदत टालने की बात कह रहे हैं। क्या आपको लगता है कि अपनी बात मनवाने के लिए आपको और मेहनत करनी होगी?
देखिए, इससे ज्यादा कुछ भी करने का मतलब है कि आप अपना सिर फोड़ू, जो मैं नहीं करना चाहता। देखिए सरकार की भी अपनी मजबूरियां हैं।
यह कोई ऐसा फैसला नहीं है जिसे पेट्रोलियम मंत्रालय अपनी मर्जी से ले। इसीलिए इसके लिए पूरी तरह से मंत्रालय को भी दोष नहीं दिया जा सकता है।
यह पूरे सरकारी तंत्र की जिम्मेदारी है। सरकार एक समिति का गठन करती है। इस समिति का काम तेल कंपनियों के वित्तीय हालात का ब्यौरा तैयार कर सरकार को सौंपती हैं और सरकार वह रिपोर्ट किसी कोने में फेंक देती हैं, तो यह बिल्कुल सही नहीं है।
आपने कहा था कि कच्चे तेल की कीमत वापस तीन आंकड़ों में जा सकती है। क्या 2009 में ऐसा हो सकता है?
एक साल के भीतर तेल के दामों का 100 डॉलर प्रति बैरल के आंकड़े तक पहुंचना काफी मुश्किल है। यह सब दुनिया में छाई मंदी पर निर्भर करता है।
ओएनजीसी के पास काफी पूंजी है। आपने कहा है कि यह समय अधिग्रहण के लिए सही है। तो इस समय आप कितनी अधिग्रहण परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं?
दरअसल, बाजार के अस्थिर हालात में अधिग्रहण नहीं होते हैं। इस समय खरीदार तो खरीदने के लिए तैयार होंगे लेकिन बेचने वाले बेचना नहीं चाहेंगे। इन हालात में कोई भी समझौता हो पाना बहुत मुश्किल है।
इसका मतलब ओएनजीसी को लागत घटाने की जरूरत नहीं है?
एक व्यावसायिक संस्था होने के नाते अगर हमारी कमाई में गिरावट आ रही है तो हम लगातार कीमत घटाएंगे। हमारे लिए तरलता की कोई समस्या नहीं है। हमें अपना मुनाफा बरकरार रखना है।
ओएनजीसी ने हाल में ही केजी बेसिन में तेल भंडार खोजे हैं। कंपनी वहां से तेल उत्खनन कब शुरू कर रही है?
हम वहां मिले 6-7 भंडारों में उत्खनन शुरू करना चाहते हैं। लेकिन अभी इस पर आने वाले पूंजी खर्च की गणना की जा रही है, जो कई अरब डॉलर आएगा।
मुझे उम्मीद है कि साल 2010 के मध्य से हम इन भंडारों में तेल उत्पादन शुरू कर देंगे। हमारा मानना है कि शुरुआत में जहां दिन भर में 20,000 बैरल तेल का उत्पादन किया जाएगा, लेकिन बाद में यह बढ़कर 1,30,000-1,40,000 बैरल प्रतिदिन हो जाएगा।