वाहनों की मांग कम होने से उनके लिए कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियां भी अजीबोगरीब मुश्किल में पड़ गई हैं।
अधिक कीमतों पर कच्चे माल खरीदने वाली कंपनियां मंदी की वजह से मांग घटने के कारण अब अपने सिर धुन रही हैं। दरअसल कच्चे माल की कीमत में पिछले कुछ दिनों में अच्छी खासी गिरावट आई है।?लेकिन इन कंपनियों के पास पहले से ही ऊंची कीमत पर खरीदे गए कच्चे माल का भंडार मौजूद है।
इस वजह से ये कंपनियां सस्ती कीमतों का कोई भी फायदा नहीं उठा पा रही हैं।फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम्स की निर्माता डेल्फी-टीवीएस के अध्यक्ष जीएस चोपड़ा ने कहा, ‘पुरानी कीमतों पर खरीदे गए माल का अंबार लगा हुआ है। लोगों ने पुरानी दरों पर माल की खरीदारी की थी जिसकी उपलब्धता अभी भी बनी हुई है।’
आमतौर पर कच्चे माल की खरीदारी और वाहन निर्माताओं को कलपुर्जों की बिक्री के बीच 4-5 महीने का प्रमुख समय होता है। श्रीराम पिस्टंस के अध्यक्ष अशोक तनेजा ने कहा, ‘दर्द गंभीर है, क्योंकि हमें अग्रिम तौर पर 90-120 दिनों के ऑर्डरों की जरूरत है। एक बार जब आप ऑर्डर दे देते हैं तो आपूर्ति शिडयूल में बदलाव लाना कठिन होता है।’
कलपुर्जा निर्माताओं का कहना है कि कुछ आपूर्तिकर्ता आपूर्ति शिडयूल मे बदलाव पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। 2008 के शुरू में जब जिंस कीमतें बढ़ रही थीं, कई कंपनियों ने दीर्घावधि अनुबंधों के जरिये अपनी आपूर्ति और दरों को सुरक्षित करने की कोशिश की थी। इनमें से कुछ अनुबंध मार्च तक के लिए हैं।
व्हील्स इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी श्रीवत्स राम ने दो सप्ताह पहले कहा था, ‘रुपये के मूल्य में आई कमी ने जिंस कीमतों में गिरावट को नकार दिया है जबकि इस्पात पर आयात शुल्क नुकसानदायक होगा।’
इसके साथ-साथ वाहन कलपुर्जा निर्माताओं का यह भी कहना है कि अन्य प्रकार के इस्पात के विपरीत धातु के मिश्रण वाले इस्पात की कीमतों में गिरावट नहीं आई है। वाहन पुर्जे बनाने वाली कंपनियों के संघ के कार्यकारी निदेशक विष्णु माथुर ने कहा कि उच्च विनिमय दर के कारण मिश्रित इस्पात की लैंडेट कोस्ट यानी माल उतारने तक की लागत में 13 फीसदी तक का इजाफा हुआ है।
तैयार माल के भंडार में 15 दिनों तक का इजाफा होकर यह 30-45 दिन से अधिक का हो गया है। कच्चे माल और तैयार माल का भंडारण बढ़ने, वाणिज्यिक वाहन निर्माताओं की ओर से भुगतान में विलंब आदि ने इस उद्योग में संकट पैदा कर दिया है। उत्पादन में कटौती से भी आपूर्तिकर्ताओं की समस्या बढ़ गई है।
श्रीवत्स राम ने कहा, ‘वाहन निर्माताओं ने उत्पादन में 20-25 फीसदी तक की कटौती कर दी है जिससे आपूर्तिकर्ताओं के पास बड़ी तादाद में माल पड़ा हुआ है।’