ऑस्ट्रेलियाई मदिरा प्रौद्योगिकीविद डायना डेविडसन ने भारतीय मदिरा के अंतरराष्ट्रीय मानकों से मेल न खाने पर चिंता जताई है और उन्होंने यह भी अनुमान लगाया है कि चीन, अर्जेंटीना, चिली और दक्षिण अफ्रीका की मदिरा निर्माता कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार से भारतीय मदिरा को आसानी से हटा सकती हैं।
मदिरा उत्पादन और विज्ञान की जानकार डेविडसन का कहना है, किसानों को बेहतरीन मदिरा बनाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले अंगूरों की खेती करने की जरूरत है, जिसके लिए उन्हें मिट्टी और उर्वरकों के सही-सही मिश्रण को समझना जरूरी है।
पुणे में भारतीय मदिरा निर्माता संगठन की ओर से आयोजित एक कार्यशाला में बिजनेस स्टैंडर्ड से उन्होंने कहा, ‘कुछ भारतीय मदिराएं बहुत अच्छी हैं, लेकिन ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मानकों से मेल नहीं खातीं। यह इसलिए क्योंकि किसानों के पास अंगूर के बाग में इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न किस्म के पौधों, जरूरी मिट्टी, सिंचाई की तकनीकों और किटनाश्कों की उचित जानकारी नहीं है।
ज्यादातर अंगूर की खेती करने वाले लोग पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं और अच्छी मदिरा की पहचान न होने की वजह से भी मदिरा के उत्पादन की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।’ भारतीय मदिरा उद्योग लगभग 1 हजार करोड़ रुपये का है और इसके 2011 तक 4,500 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है। इस साल जनवरी से अब तक भरातीय मदिरा निर्माता कंपनियों ने 2.25 करोड़ लीटर मदिरा का उत्पादन किया है, जो फ्रांस, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन, सिंगापुर और बेल्जियम को निर्यात की जाती है।