वेदांता की सहायक कंपनी हिंदुस्तान जिंक वृद्धि के अपने अगले चरण में अमेरिका और यूरोप जैसे बाजारों में अपने परिचालन का विस्तार करने पर विचार कर रही है। बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) अरुण मिश्रा ने यह जानकारी दी।
मिश्रा ने कहा कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जस्ता उत्पादक अमेरिका और/या यूरोप में जस्ता परिसंपत्तियां हासिल करते हुए यह पेशकश कर रही है क्योंकि यह अगले कुछ साल में 15 लाख टन से लेकर 20 लाख टन प्रति वर्ष की खनन क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। वर्तमान में मूल कंपनी वेदांता के पास अधिकांश जस्ता परिसंपत्ति नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका और आयरलैंड जैसे देशों में है।
मिश्रा ने कहा कि हिंदुस्तान जिंक द्वारा अकार्बनिक वृद्धि को बढ़ावा देने से उसे अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित बाजारों में उभरते अवसरों का फायदा उठाने में मदद मिलेगी। जिंक का उपयोग निर्माण क्षेत्र में गैल्वनाइजिंग कार्यों में, बैटरी, रसायन, नल, पाइप और टायर बनाने तथा अन्य गतिविधियों में किया जाता है।
कंपनी की मौजूदा खनन क्षमता तकरीबन 11 लाख टन प्रति वर्ष है। मुख्य कार्याधिकारी ने कहा कि अगली कुछेक तिमाहियों के दौरान यह 12 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है क्योंकि कंपनी अपने परिचालन में दक्षता हासिल कर है।
मिश्रा ने कहा कि हर साल हमारा जो 25-30 करोड़ डॉलर का पूंजीगत व्यय होता है, उसमें से पांच से 7.5 करोड़ डॉलर बाधाओं को दूर करने वाली विभिन्न परियोजनाओं में चला जाता है। हम अपने परिचालन की दक्षता में सुधार करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। इससे कुल उत्पादन में सुधार करने में भी मदद मिलेगी।
बाधाओं को दूर करने का मतलब है मौजूदा संयंत्रों और उपकरणों से और अधिक उत्पादन प्राप्त करना। उत्पादन प्रक्रिया में सुधार करते हुए ऐसा किया जाता है। मिश्रा ने बताया कि विदेशों में परिसंपत्तियों के अधिग्रहण से हिंदुस्तान जिंक को अपने करोबार प्रारूप का जोखिम दूर करने में भी मदद मिलेगी, इस फिलहाल भारत तक ही सीमित है। अलबत्ता कंपनी के उत्पादों की भारतीय बाजार में भी मांग दमदार है।