भारतीय रिफाइनरी कंपनियों पर कच्चे तेल की धार एक बार फिर भारी पड़ने वाली है। माना जा रहा है कि सितंबर 2008 को समाप्त हुई दूसरी तिमाही में ये कंपनियां अपेक्षा से कम मार्जिन दर्ज करा सकती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनियों के मार्जिन में यह कमी कच्चे तेल की कीमत में आई कमी की वजह से कंपनियों के पास मौजूदा स्टॉक की कीमत घटने से हुई है। पेट्रोलियम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ‘यह पूरी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। रिफाइनरी से मिलने वाले मार्जिन दुनियाभर में ईंधन के लिए मांग में कमी के चलते घट रहे हैं।’
तेल के मार्जिन पर बारीक नजर रखे हुए चार विश्लेषकों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि भारत की चार सबसे बड़ी रिफाइनरियों के कुल रिफाइनरी मार्जिनों में 2 डॉलर प्रति बैरल से लेकर 6 डॉलर प्रति बैरल के बीच गिरावट हो सकती है। रिफाइनरी मार्जिन कच्चे तेल की खरीद कीमत और पेट्रोलियम उत्पादों को बेचने वाली कीमत के बीच का अंतर होता है।
कच्चे तेल के लिए ऑर्डर देने के बाद उसकी आपूर्ति होने में 20 से 30 दिन का समय लग रहा है। इसलिए सितंबर 2008 को समाप्त हुई तिमाही में कीमतों में हुई जबरदस्त गिरावट का रिफाइनरी कंपनियों पर बुरा असर पड़ रहा है, जो कच्चा तेल खरीद रही हैं। जब कीमतें बढ़ रहीं थीं तब कंपनियों को ज्यादा फायदा हो रहा था।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) जिसका देश की कुल 40 प्रतिशत रिफाइनरी क्षमता पर नियंत्रण है, तिमाही के दौरान 5 से 6 डॉलर प्रति बैरल के बीच रिफाइनरी मार्जिन दर्ज करा सकती है। इससे पिछली जून तिमाही में कंपनी का रिफाइनरी मार्जिन 16.8 डॉलर प्रति बैरल और पिछले वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में 8.44 डॉलर प्रति बैरल था।
बीपीसीएल और एचपीसीएल का रिफाइनरी मार्जिन 2 से 3 डॉलर प्रति बैरल तक गिरने की उम्मीद है। मामले पर नजर बनाए हुए विशेषज्ञों का कहना है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज, जिसका भारत की लगभग 22 प्रतिशत रिफाइनिंग क्षमता पर नियंत्रण है, भी सितंबर 2008 में समाप्त तिमाही में 13 डॉलर प्रति बैरल से कम ही रिफाइनिंग मार्जिन दर्ज कराएगी, जबकि जून तिमाही में कंपनी का मार्जिन 15 डॉलर प्रति बैरल से अधिक था।
कम रिफाइनरी मार्जिन की अहम वजह तेल की कीमत में कमी और कंपनियों के पास मौजूद उनके तेल उत्पाद हैं। कंपनियों ने रिकॉर्ड स्तर पर अधिक कीमतों में तेल खरीदा था, लेकिन इस तेल के भारत पहुंचने के साथ ही तेल की कीमत भी घट गई। इसके पीछे वैश्विक तेल कीमतों में पिछले तीन महीनों में 50 प्रतिशत से भी अधिक की गिरावट वजह है।
इसके अलावा तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों के बीच का अंतर भी घट गया है। जहां तेल की पिछले तीन महीनों में कीमतें 50 प्रतिशत तक घटी हैं, वहीं पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में 55 से 60 प्रतिशत की गिरावट हुई है। यह भी मार्जिनों के कम होने का एक और कारण है।
इंडियन ऑयल की सहायक कंपनी चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ने पहले ही सितंबर के लिए अपने मार्जिन 1.68 डॉलर प्रति बैरल दिखाया है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में कंपनी का मार्जिन 6.84 डॉलर प्रति बैरल था। इन सभी कंपनियों के पास 7 से 10 दिन का तेल का और तेल उत्पादों का स्टॉक पड़ा हुआ है।