उड़ीसा में सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) की पहचान व्यापक विकास और संतुलित आर्थिक विकास के सच्चे वाहन के रूप में करते हुए राज्य सरकार एक नई एमएसएमई विकास नीति तैयार कर रही है।
इस नई नीति से राज्य में इन उद्यमों के लिए वित्तीय और गैर-वित्तीय प्रोत्साहन मिलेगा। इस नई नीति को राज्य में सहायक और विक्रय इकाइयों के विकास के उद्देश्य से भी तैयार किया जा रहा है। यह नीति खासकर लौह एवं इस्पात, एल्युमिनियम एवं विद्युत जैसे क्षेत्रों में आगामी बड़े उद्योगों के लिए अनुकूल होगी।
उड़ीसा सरकार में उद्योग विभाग के निदेशक हेमंत शर्मा ने कहा, ‘नई नीति के तहत आगामी सभी औद्योगिक एस्टेटों मंह 25 फीसदी भूमि एमएसएमई के लिए निर्धारित की जाएगी। इस नीति में राज्य में बड़ी औद्योगिक परियोजनाओं के लिए भूमि खरीद का 10 फीसदी लघु उद्योगों के लिए आरक्षित किए जाने की जरूरत पर भी बल दिया गया है।’
एमएसएमई विकास नीति में एक उद्यम पूंजी फंड का भी प्रस्ताव रखा गया है जिसे 50 करोड़ रुपये की राशि के साथ राज्य सरकार द्वारा तैयार किया जाएगा। इस कोष के जरिये एमएसएमई को वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाएगी और बाद में उड़ीसा स्टेट फाइनेंशियल कॉरपोरेशन (ओएसएफसी) और स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (सिडबी) जैसी वित्तीय संस्थाएं भी इस फंड के लिए वित्तीय भागीदारों की भूमिका निभाएंगी।
शर्मा ने कहा, ‘एमएसएमई के लिए ऋण की जरूरतों और आपूर्ति पर निगरानी रखने के लिए राज्य के मुख्य सचिव के नेतृत्व में एक ऋण निगरानी सूमह का गठन किया जाएगा। यह समूह विभिन्न बैंकों और वित्तीय संस्थाओं में लघु उद्योगों के लिए लंबित पड़े ऋण प्रस्तावों की समीक्षा करेगा।’
उड़ीसा में बड़े उद्योगों के जरिये सहायक और विक्रय इकाइयों के विकास के लिए राज्य सरकार निजी कंपनियों के साथ समझौते में एक खंड जोड़े जाने पर विचार कर रही है। सहायक और विक्रय इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए निजी क्षेत्र में प्रमुख उद्योगों द्वारा किए जा रहे इन प्रयासों की देखरेख जिलाधीशों और राजस्व जिला आयुक्तों द्वारा की जाएगी।
शर्मा ने उड़ीसा में इस्पात उद्योग की सहायक और विक्रय इकाइयों के विकास पर आयोजित सेमिनार ‘एसएमई कनेक्ट’ के दौरान अनौपचारिक रूप से मीडियाकर्मियों से बातचीत में यह जानकारी दी। इस सेमिनार का आयोजन राज्य सरकार के इंडस्ट्रियल प्रमोशन ऐंड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन ऑफ उड़ीसा लिमिटेड (आईपीआईसीओएल), भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूनिडो) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
लघु उद्योगों को वित्तीय समर्थन मुहैया कराए जाने के अलावा यह नई नीति जिला स्तर पर सिंगल विंडो क्लियरेंस अथॉरिटी को मजबूत बनाने का भी प्रयास करेगी।
जिला स्तर पर सिंगल विंडो क्लियरेंस अथॉरिटी (एसडब्ल्यूसीए) राज्य के चार जिलों – कटक, भुवनेश्वर, जाजपुर और झारसुगुडा में प्रायोगिक आधार पर शुरू की गई है और राज्य सरकार 2008-09 के अंत तक इसे सभी जिलों में शुरू करना चाहती है। जिला स्तर पर एसडब्ल्यूसीए को 50 करोड़ रुपये तक के निवेश वाली परियोजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार है।
राज्य स्तर पर एसडब्ल्यूसीए 50-1,000 करोड़ रुपये की रेंज में निवेश वाली परियोजनाओं को मंजूरी दे सकती है। वहीं हाई लेवल क्लियरेंस अथॉरिटी (एचएलसीए) को 1,000 करोड़ रुपये से ऊपर की परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाने का अधिकार है।
लघु एवं मझोले उद्योगों को विपणन समर्थन मुहैया कराने के लिए इस नीति के तहत ओएसएफसी, उड़ीसा कम्प्यूटर एप्लीकेशन सेंटर (ओसीएसी) और उड़ीसा पर्यटन विकास निगम (ओटीडीसी) जैसी सरकारी एजेंसियों की पहचान की गई है। ये एजेंसियां एमएसएमई के उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न एमएसएमई के कंसोर्टियम नेताओं के तौर पर काम करेंगी।
शर्मा ओएसआईसी के प्रबंध निदेशक भी हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की अन्य संस्था उड़ीसा लघु उद्योग निगम लिमिटेड (ओएसआईसी) एमएसएमई को लाभान्वित करने के लिए राज्य के विभिन्न इलाकों में कच्चे माल के तकरीबन 12 बैंकों की स्थापना करेगी।
इसके अलावा इस एमएसएमई नीति के एक हिस्से के तौर पर राज्य के पांच औद्योगिक इलाकों – कलिंगनगर, झारसुगुडा, राउरकेला, ढेंकानाल और रायगढ़ – में क्षेत्रीय औद्योगिक केंद्रों की भी स्थापना की जाएगी। फिलहाल सार्वजनिक क्षेत्र के 9 उपक्रमों और 224 बड़े एवं मझोले उद्यमों के अलावा उड़ीसा में 37,917 पंजीकृत सूक्ष्म एवं लघु उद्यम हैं।