तेल कंपनियों पर विमान कंपनियों के बकाये के मामले में कोई हल ढूंढ़ने के लिए पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल और दोनों एयरलाइंस के साथ तेल कंपनियों के प्रमुख से मुलाकात करेंगे।
ईंधन की ब्रिकी को लेकर तेल कंपनियों का विमान कंपनियों पर 2,000 करोड़ रुपये बकाया है। देवड़ा ने एक सम्मेलन के दौरान कहा, ‘हम नहीं चाहते कि विमान कंपनियों को अपना परिचालन बंद करना पड़े। हम मामले में कुछ मदद पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।’
यूबी समूह के मुख्य वित्तीय अधिकारी रवि नेदुंगडी ने कहा, ‘हमनें एक प्रस्ताव तैयार किया है। विमान ईंधन (एटीएफ) के आयात से जुड़े कुछ मुद्दे हैं जिन पर चर्चा की जानी है। साथ ही एटीएफ की कीमतों की बात की जाए तो सरकारी तेल कंपनियां कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट का पूरा फायदा विमान कंपनियों को नहीं दे रही हैं। एक और मुद्दा जिस पर चर्चा की जानी है वह एटीएफ को घोषित उत्पादों की श्रेणी में रखने को लेकर है।’
सूत्रों का मानना है कि किंगफिशर यह मांग कर सकती है कि एटीएफ के आयात के लिए सरकारी तेल कंपनियां उन्हें बुनियादी सेवाएं मुहैया कराएं। एटीएफ आयात करने से विमान कंपनियों के ईंधन का बिल 25 फीसदी तक घट सकता है और इससे उनके आमदनी और खर्च के बीच का अंतर कुछ कम होगा। फिलाहल एटीएफ के आयात में सबसे बड़ी अड़चन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
उद्योग जगत से जुड़े एक विशेषज्ञ ने बताया, ‘रिलायंस के पास 17 शहरों में एटीएफ आपूर्ति के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है। पर एटीएफ का आयात मंगलौर, जेएनपीटी (मुंबई के करीब) और चेन्नई जैसे तटीय बाजारों में ही किया जा सकता है। परिवहन पर जो शुल्क लगेगा वह कुछ इस तरह होगा कि बिक्री कर नहीं लगने से जो फायदा हो रहा है वह न रहे।’
ईंधन की खरीद से तेल कंपनियों का जेट एयरवेज, किंगफिशर और एनएसीआईएल पर 2,000 करोड़ रुपये बकाया हैं। हालांकि विमान कंपनियों नुकसान में चल रही हैं और इस वजह से वे बकाये का भुगतान नहीं कर पा रही हैं। तेल कंपनियों ने बकाये भुगतान के लिए विमान कंपनियों को 60 दिनों की मोहलत दी थी, हालांकि विमान कंपनियां इस मोहलत के खत्म होने के बाद भी बकाया चुकता नहीं कर पाई हैं।
विमान कंपनियों का कहना है कि उन्हें जो नुकसान हो रहा है उसकी वजह विमान ईंधनों की ऊंची दरें हैं। वैश्विक बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में लगी आग की वजह से ही इस वर्ष फरवरी के बाद से ही विमान ईंधनों की कीमतें हर महीनें बढ़ी हैं। हालांकि पिछले दो महीनों में इसमें 20 फीसदी से कुछ अधिक की गिरावट आई है। देश में विमान ईंधनों पर काफी अधिक कर वसूला जाता है और विमान कंपनियां काफी समय से इसमें कटौती करने की मांग कर रही हैं।
इधर इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन को भी सब्सिडी दर पर पेट्रोल, डीजल, किरोसीन और रसोई गैस बेचने की वजह से नुकसान उठाना पड़ रहा है और वे नकदी की कमी से जूझ रही हैं। हालांकि विमान ईंधनों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता और तेल कंपनियां उन्हें बाजार कीमत पर बेचती हैं।