जेट एयरवेज ने छंटनी का चाबुक लहराया, तो राजनीति के अखाड़े तक में हो हल्ला मचने लगा।
लेकिन हकीकत पर निगाह डालें, तो देर-सबेर विमानन उद्योग में इससे भी कई गुना बड़े स्तर पर यानी लगभग 12,000 कर्मचारियों की छंटनी होना तयशुदा है। हवाई मुसाफिरों की लगातार घटती तादाद के मद्देनजर विमानन कंपनियों को अपने घरेलू बेड़े में भी कटौती करनी होगी और कर्मचारियों की संख्या भी घटानी होगी।
फिलहाल जेट एयरवेज, किंगफिशर एयरलाइंस, एयर इंडिया और कम किराये वाली विमानन कंपनियों के पास 300 से भी ज्यादा विमान हैं। घरेलू मार्गों से इन विमानन कंपनियों को कम से कम 60 विमान तो हटाने ही होंगे। कंपनियों को उम्मीद है कि क्षमता में कमी करने से उनके विमानों में औसतन 80 फीसद सीटें भरने लगेंगी।
पिछले कुछ महीनों में यह आंकड़ा घटकर महज 50 फीसद रह गया है, जबकि लागत वसूल करने के ही लिए विमानन कंपनियों को कम से कम 80 फीसद सीटें भरनी पड़ती हैं। कर्मचारियों की छंटनी पिछले दिनों में बेशक विवाद का सबब बनती रही है, लेकिन विकास की मंद रफ्तार से निपटने के लिए विमानन कंपनियों को ऐसा करना ही पड़ेगा।
भारत में प्रत्येक विमान पर औसतन 200 कर्मचारी काम कर रहे हैं। यदि 60 विमान कम किए जाएंगे, तो उसी के अनुपात में लगभग 12,000 कर्मचारियों की छंटनी भी करनी पड़ेगी। हालांकि एयर इंडिया जैसी कुछ विमानन कंपनियों में प्रत्येक विमान पर 300 कर्मचारी काम करते हैं।
ऐसे में माना जा सकता है कि घरेलू विमानन उद्योग में कुल 20 फीसद कर्मचारियों पर छंटनी की तलवार लटक रही है। घरेलू विमानन में अभी 60,000 कर्मचारी काम कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय विमानन कंपनियों में तो प्रत्येक विमान पर 150 कर्मचारी काम करते हैं। ऐसे में जानकारों के मुताबिक छंटनी का आंकड़ा और भी बड़ा होना चाहिए।
हालांकि राजनीति ने तस्वीर थोड़ी बदली है और माना जा रहा है कि कंपनियां इतनी बड़ी तादाद में छंटनी नहीं कर सकेंगी। उनमें भी कम किराये वाली कंपनियां बच जाएंगी क्योंकि वहां प्रत्येक विमान पर बमुश्किल 100 कर्मचारी काम करते हैं।
इस दिशा में कंपनियों ने बढ़ना शुरू भी कर दिया है। एयर इंडिया ने लगभग 15,000 कर्मचारियों के सामने अवैतनिक अवकाश पर जाने की पेशकश रखी है। यह बात अलग है कि खुद कंपनी को भी लगता है कि मुश्किल से 1500 कर्मचारी ही इसे कबूल करेंगे। जेट एयरवेज भी 1900 कर्मचारियों को छांटना चाहती थी, फिलहाल यह योजना भी ठंडे बस्ते में चली गई है।
विमानन कंपनियां अब वेतन में कटौती करने और विदेशी कर्मचारियों को दरवाजा दिखाने जैसे रास्तों पर चल रही हैं। सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन (भारत एवं पश्चिम एशिया) के मुख्य कार्यकारी कपिल कौल कहते हैं, ‘भारतीय बाजार में अभी भी 20 फीसद विमान ज्यादा हैं और इसमें कटौती होने ही जा रही है। जेट एयरवेज, किंगफिशर एयरलाइंस और एयर इंडिया कुल मिलाकर 30 विमान अपने बेड़ों से बाहर कर रही हैं। जाहिर है, इससे रोजगार भी छिनेंगे और कंपनियों को लागत कटौती के दूसरे रास्ते भी अपनाने होंगे।’
किंगफिशर एयरलाइंस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी इस बात की तस्दीक की। उसने कहा, ‘तकरीबन 20 फीसद अतिरिक्त यात्री क्षमता वाले इस उद्योग में महज 50 फीसद सीटें ही भर पा रही हैं। अगर किराये 10 फीसद बढ़ा दिए जाएं और 80 फीसद सीटें भर जाएं, तो लागत वसूल हो जाएगी।’