अपनी क्षमता का विस्तार करने वाली स्थानीय इस्पात विनिर्माताओं के लिए निर्यात पर ध्यान देना जरूरी है क्योंकि स्थानीय मांग उत्पादन के अनुपात में नहीं है।
आर्सेलरमित्तल निप्पन स्टील (एएमएनएस) इंडिया के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) दिलीप ओमेन ने यह बात कही। ओमेन ने पीटीआई-भाषा के साथ बातचीत में कहा कि क्षमता इस्तेमाल को उच्च स्तर पर बनाए रखने के लिए स्थानीय विनिर्माताओं को निर्यात पर ध्यान देना जरूरी है।
उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि विस्तार हो रहा है, निश्चित रूप से एक ऐसा चरण आएगा जब आपको निर्यात करना होगा। उच्च क्षमता इस्तेमाल को कायम रखने के लिए यह जरूरी है।’’ उनका यह बयान इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि इस्पात कंपनियों की निगाह सरकार पर है कि वह निर्यात पर लगाए गए शुल्कों को वापस ले। इससे उन्हें राहत मिलेगी। सरकार ने 21 मई को लौह अयस्क के निर्यात पर शुल्क में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि की थी।
कुछ अन्य इस्पात मध्यवर्तियों पर भी इसे बढ़ाया गया था। सरकार के सालाना 30 करोड़ टन इस्पात उत्पादन के लक्ष्य के अनुरूप कई अन्य कंपनियां मसलन टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू स्टील, सेल और जेएसपीएल अपनी क्षमता का विस्तार कर रही हैं।
एएमएनएस इंडिया ने शुक्रवार को अपनी 60,000 करोड़ रुपये की विस्तार परियोजना पर काम शुरू किया। इसके तहत हजीरा संयंत्र की क्षमता को मौजूदा के 90 लाख टन से बढ़ाकर 1.5 करोड़ टन किया जाना है। उन्होंने कहा, "इस परियोजना से 60 लाख टन क्षमता और जुड़ेगी। आप अचानक अपनी बाजार हिस्सेदारी उसी अनुपात में नहीं बढ़ा सकते।"
भारतीय इस्पात संघ (आईएसए) के अध्यक्ष ओमेन ने कहा कि तब तक आपको निर्यात करना होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत सरकार इस्पात पर निर्यात शुल्क को लेकर विचार करेगी।