मुंबई स्थित बायोटेक फर्म भारत सीरम्स ऐंड वैक्सींस (बीएसवीएल) कोविड-19 उपचार के लिए घरेलू तौर पर पॉलिक्लोनल एंटीबॉडी उत्पाद पर काम कर रही है। यदि इसका परीक्षण सफल रहा तो यह भारत में स्वदेशी तौर पर विकसित पहला पॉलिक्लोनल एंटीबॉडी उत्पाद होगा।
बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत करते हुए बीएसवीएल के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी संजीव नवंगुल ने कहा कि सार्स-कोव-2 के स्पाइक प्रोटीन का इस्तेमाल एंटीबॉडी टाइटर विकसित करने में इस्तेमाल किया जाता है। नवंगुल ने कहा, ‘हमने देश में प्रयोगशाला में कुछ निष्प्रभावी परीक्षण किए हैं और कुछ अध्ययन अमेरिका में भी किए हैं। हमें काफी अच्छे परिणाम मिले।’
मानव चिकित्सकीय परीक्षण यहां शुरू किया जाना बाकी है। हमारा शरीर संक्रमण से लडऩे के प्रयास में एंटीबॉडीज नामक प्रोटीन विकसित करता है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कृत्रिम एंटीबॉडी हैं, जो हमारी प्रतिरोधक प्रणाली की गतिविधि की नकल हैं। इन्हें मानव रक्त या सीरम से एंटीबॉडीज निकालने की प्रक्रिया के तहत प्रयोगशाला में तैयार होते हैं और फिर इनकी क्लोनिंग की जाती है। इसके विपरीत, पोलीक्लोनल एंटीबॉडीज विभिन्न तरह के इम्यून सेल इस्तेमाल के जरिये तैयार किए जाते हैं।
रॉश जैसी कंपनियों ने भारत में एंटीबॉडी कॉकटेल थेरेपी उपलब्ध कराई है। ब्रिटेन की दवा निर्माता ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके) को हाल में उसके मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (सोट्रोविमैब) के लिए अमेरकी दवा नियामक से मंजूरी मिली है। इनका इस्तेमाल 12 साल से ज्यादा उम्र के मामूली लक्षण वाले कोविड-19 मरीजों के उपचार में किया जाता है। अहमदाबादस्थित जाइडस कैडिला ने अपने एंटीबॉडी कॉकटेल – जेडआरसी-3308 के चिकित्सकीय परीक्षण शुरू करने के लिए भारतीय दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) से मंजूरी मांगी है।
अब जाइडस कोविड-19 उपचार के लिए मोनोक्लोनल एंटीबॉडी आधारित कॉकटेल विकसित करने वाली एकमात्र भारतीय कंपनी बन गई है।
सिप्ला ने जून में प्रति मरीज 59,750 रुपये की कीमत पर रॉश की एंटीबॉडी कॉकटेल दवा पेश की है। इसके अलावा, बीएसवीएल सार्स-कोव-2 संक्रमण की वजह से पैदा हुई रक्त थक्का बनने और सूजन आने की समस्या पर भी शोध कर रही है।
