सरकार द्वारा इस्पात के निर्यात पर लगाए गए शुल्क के मद्देनजर इस्पात कंपनियां अपनी व्यापक क्षमता विस्तार योजनाओं की समीक्षा करने के लिए मजबूर हो सकती हैं। निजी क्षेत्र की प्रमुख इस्पात उत्पादकों ने कहा कि क्षमता विस्तार की योजनाएं बिक्री मेल- घरेलू और निर्यात बाजार की- धारणाओं पर आधारित होती हैं जो अब काफी प्रभावित हो चुकी हैं।
जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक एवं ग्रुप सीएफओ शेषगिरि राव ने कहा, ‘यदि 1.8 करोड़ टन निर्यात प्रतिस्पर्धी नहीं रह जाएगा और घरेलू बाजार उसे खपाने में समर्थ नहीं होगा तो उद्योग को अपनी क्षमताएं घटानी पड़ेगी।’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए उद्योग में हरेक कंपनी द्वारा विस्तार योजनाओं की समीक्षा करना अपरिहार्य है।’
राव ने कहा कि वित्त वर्ष 2022 में भारत में इस्पात की खपत 10.5 करोड़ टन थी और निर्यात 1.8 करोड़ टन हुआ था। जबकि उद्योग 80 फीसदी क्षमता उपयोगिता पर परिचालन कर रहा था। उन्होंने कहा कि उसके बाद उद्योग ने व्यापक क्षमता विस्तार की घोषणा की ताकि घरेलू एवं विदेशी जरूरतों को पूरा करने के लिए क्षमता हासिल की जा सके।
इस्पात उत्पादन करने वाली एक प्रमुख कंपनी ने कहा कि वह सरकार की इस पहल के पूर्ण प्रभाव का अध्ययन कर रही है लेकिन इससे निश्चित तौर पर उद्योग में क्षमता विस्तार को झटका लगेगा क्योंकि निर्यात बाजार अब कोई आकर्षक विकल्प नहीं रह गया है। ऐसे में यदि घरेलू बाजार की मांग सुस्त होगी तो क्षमता विस्तार प्रभावित होगा।
इस्पात उत्पाादन करने वाली एक अन्य कंपनी ने कहा, ‘इसका प्रभाव व्यापक होगा। निवेश की योजना इस तथ्य के आधार पर बनाई जाती है कि घरेलू बाजार में कितनी बिक्री हो सकती है और कितना निर्यात होगा। अब उस पर नए सिरे से गौर करने की आवश्यकता होगी और निवेश को फिलहाल टालना पड़ सकता है।’
जिंदल स्टील ऐंड पावर (जेएसपीएल) के प्रबंध निदेशक वीआर शर्मा ने कहा कि इससे नए निवेश हतोत्साहित होंगे। उन्होंने कहा, ‘पूरा देश एक ही सूत्र पर काम कर रहा था कि हम निर्यात करेंगे और यूरोप एवं अन्य देशों में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुई खाई को पाटेंगे। इससे बंदरगाह और रेलवे काफी व्यस्त दिख रहे थे और शिपिंग उद्योग काफी अच्छा कर रहा था। लेकिन अब विस्तार पर नए सिरे से विचार किया जा सकता है।’
भारत में एकीकृत इस्पात उत्पादकों का कुल उत्पादन में करीब 60 फीसदी योगदान है जिसमें निजी क्षेत्र के उत्पादकों की उल्लेखनीय हिस्सेदारी है। निजी क्षेत्र के उत्पादकों ने व्यापक विस्तार योजनाएं तैयार की हैं। जेएसपीएल ने ओडिशा के अंगुल संयंत्र में क्षमता को 2030 तक 2.52 करोड़ टन तक बढ़ाने की योजना बनाई है जबकि टाटा स्टील की नजर वित्त वर्ष 2030 तक 4 करोड़ टन क्षमता पर है।
आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया (एएम/एनएस इंडिया) ने गुजरात के हजीरा में अपनी क्षमता को मौजूदा 1.4 करोड़ टन से बढ़ाकर 1.8 करोड़ टन करने की योजना बनाई है। इसके अलावा उसने 1.2 करोड़ टन क्षमता के एक एकीकृत इस्पात संयंत्र के लिए ओडिशा सरकार के साथ सहमति पत्र पर भी हस्ताक्षर किए हैं।
