विश्वव्यापी मंदी की मार से उत्तर प्रदेश के लघु एवं मझोले उद्योग (एसएमई) भी बच नहीं सके हैं।
मंदी की आंच इस राज्य के उद्योगों को झुलसा रही है। लघु उद्योगों की प्रतिनिधि संस्था इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आईआईए), जो पहले उत्तर प्रदेश में वैट की दरें बढ़ाए जाने के खिलाफ आंदोलनरत थी, अब तरलता में कमी को लेकर चिंतित है। आईआईए का मानना है कि मंदी से लघु उद्योगों का बच पाना मुश्किल है।
बनारस के सिल्क निर्यातक रजत पाठक का कहना है कि तरलता कम होने से सबसे ज्यादा परेशान मझोले उद्योग हैं। उनका कहना है कि बाजार में पैसा ऊंची दरों पर मिल रहा है और प्रतिस्पर्धा के चलते तैयार माल को सस्ते दामों पर ही बेचना पड़ रहा है। बाजार में मौजूदा हालात ने छोटे उद्यमियों को भिखारी की भूमिका में ला खड़ा किया है।
लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. अजय प्रकाश भी रजत के विचारों से सहमत दिखे। उनका कहना है कि पूंजी की उपलब्धता न होने पर पहले लघु उद्योग ही मरते हैं। डॉ. अजय का कहना है कि लघु उद्योग बैंक के अलावा खुले बाजार से भी पैसा उधार लेते हैं जहां इस समय ब्याज की दरें काफी ज्यादा हैं।
दूसरी ओर भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के मुख्य महाप्रबंधक एन. के. मैनी का कहना है कि स्थिति उतनी चिंताजनक नहीं है जितनी इसे दर्शाया जा रहा है। उनका मानना है कि हालात ठीक हैं और लघु उद्योगों के लिए घबराने की कोई बात नहीं है। मेनी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सही हालात के बारे में बैंक ही बता सकते हैं, लेकिन शायद ही कोई लघु उद्योग मौजूदा समय में परेशानी में हो।