कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि कोविड-19 के नए टीकों, दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के अनुसंधान एवं विकास में हुए कंपनियों के खर्च को तीन वित्त वर्षों तक के लिए, यानी 2022-23 तक, कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के दायरे में रखा जाएगा। कारोबार की सामान्य गतिविधियां सीएसआर के दायरे में नहीं आती हैं और कोविड दवाओं और टीकों के लिए अनुसंधान एवं विकास के संबंध में केवल वे कंपनियां अपवाद हैं जो कंपनी कानून की अनुसूची 7 के नौवें अंश के तहत संगठनों के साथ सहयोग करती हैं। इन संगठनों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं और परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत स्थापित स्वायत्त संस्था, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद शामिल हैं।
डेलॉयट इंडिया के पार्टनर आनंद सुब्रमण्यन ने कहा, ‘कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने देश में कंपनियों के सीएसआर के क्रियान्वयन के प्र्रश्नों से संबंधित महत्त्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया है। यह एक स्वागत योग्य कदम है और इससे देश में कंपनियों की महामारी से बचाव की लड़ाई को बल मिलेगा।’
कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि सीएसआर के तहत स्थानीय क्षेत्रों को वरीयता देने का निर्देश दिया गया है, हालांकि यह अनिवार्य नहीं है। सरकार ने कहा है कि सातवीं अनुसूची में युद्ध में मारे गए लोगों की पत्नियों, कला और संस्कृति, इसी तरह की अन्य कल्याणकारी गतिविधियों का जिक्र है और यह देश भर में लागू है।
कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय का कहना है, ‘कानून के मुताबिक यह सुनिश्चित करना है कि सीएसआर पहल राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप हो और सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में कॉरपोरेट क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाई जाए।’
नांगिया एंडरसन के पार्टनर सूरज नांगिया ने कहा, ‘सरकार यह समझती है कि नए युग के कारोबार के साथ भौगोलिक सीमाएं खत्म हो रही हैं और उसने कॉरपोरेट संस्थाओं को सामाजिक विकास प्रक्रिया में साझेदार के रूप में स्वीकार किया है। मंत्रालय के स्पष्टीकरण से सीएसआर कानून को ठीक से समझने में मदद मिलेगी और इससे प्रभावी क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जा सकेगा।’ सरकार ने जनवरी 2021 में नए नियमों को अधिसूचित किया जिसमें बड़े विषय रेखांकित किए गए कि सीएसआर अनिवार्य है और यह एक सांविधिक दायित्व है।
इसके बाद सीएसआर अंशदान के प्रभाव आकलन, सीएसआर परियोजनाओं के प्रयोजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भागीदारी, सीएसआर नीति का मसौदा तैयार करना, सीएसआर के अर्थ, इसके क्रियान्वयन और कंपनियों के अपने विवेक के आधार पर फैसला करने जैसी सीमाओं के नए पहलुओं को जोड़ा गया।
सिंह ऐंड एसोसिएट्स के पार्टनर नीरज दुबे ने कहा, ‘इन नए पहलुओं ने कई भ्रम पैदा किए हैं और इसमें स्पष्टता की जरूरत थी। हालांकि सवालों के जवाब से स्पष्टता मिलती है लेकिन कंपनियों के लिए प्रशासनिक खर्चे के लिए 5 प्रतिशत की सीमा प्रावधान का पालन करना मुश्किल हो सकता है।
सीएसआर से जुड़े सवालों के जवाब से प्रशासनिक खर्चे की पात्रता का ब्योरा मिलता है। इनमें कंपनी में सीएसआर कार्यों के प्रबंधन आदि में किया गया खर्च शामिल है। सीएसआर गतिविधियों के प्रबंधन को लागू करने वाली एजेंसियों का खर्च प्रशासनिक खर्च की राशि नहीं होगी और इसका दावा कंपनी द्वारा नहीं किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर किसी कंपनी के सीएसआर विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन और प्रशिक्षण, स्टेशनरी लागत और यात्रा खर्च को प्रशासनिक खर्च के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। हालांकि शिक्षा से जुड़ी सीएसआर परियोजना के लिए स्कूल के शिक्षकों या अन्य कर्मचारियों का वेतन शिक्षा परियोजना लागत के दायरे में आएगा।
सीएसआर नियमों में कहा गया है कि अगर कोई कंपनी सीएसआर पर आवश्यक राशि से अधिक खर्च करती है तो 1 जनवरी, 2021 के बाद के तीन वर्षों तक के लिए सीएसआर के अनिवार्य खर्च के लिए अतिरिक्त राशि निर्धारित की जा सकती है। हालांकि, वित्त वर्ष 2020-21 से पहले खर्च की गई अतिरिक्त राशि को आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। नांगिया ने कहा, ‘तीन साल तक खर्च को आगे बढ़ाने की आजादी से कंपनियों को सामाजिक विकास गतिविधियों पर उदारतापूर्वक खर्च करने की आजादी मिलेगी।’ वैश्विक स्तर पर, अधिकांश देशों ने सीएसआर खर्च के लिए एक स्वैच्छिक दृष्टिकोण अपनाया है। नॉर्वे और स्वीडन जैसे देश में स्वैच्छिक सीएसआर है और इन देशों ने एक अनिवार्य प्रावधान की शुरुआत की। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नियमों में ढील देने से पहले भारत को इसके लिए आदि बनने के लिए अनिवार्य सीएसआर व्यवस्था को लागू करने की जरूरत है।