डाबर समूह की कंपनियों का शोध गतिविधियों के नफा-नुकसान से अलग संगठन डाबर रिसर्च फाउंडेशन (डीआरएफ) जल्द ही एक अलग दवा अनुसंधान कंपनी बन सकती है।
इस कंपनी के तहत पेटेंट दवाओं के विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोगपूर्ण अनुसंधान कार्यक्रम चलाए जाएंगे। डीआरएफ को अलग करने के पीछे डाबर फार्मा को जर्मनी की स्वास्थ्य देख-रेख से जुड़ी कपंनी फ्रेसीनियस को बेचे जाना एक बड़ी वजह है।
100 से भी अधिक डीआरएफ विज्ञानिक डाबर फार्मा की अनुसंधान टीम का हिस्सा बनने के लिए डीआरएफ से अलग हो चुके हैं, आयुर्वेद, फिटोफार्मा, बायोटेक्नोलॉजी, पर्सनल केयर उत्पाद, खाद्य आदि क्षेत्रों में अनुसंधान करने वाले विज्ञानिक बड़ी संख्या में डीआरएफ से डाबर इंडिया की अपनी अनुसंधान शाखा में आ चुके हैं।
अब डीआरएफ में दवा अनुसंधान विज्ञानिक ही बचे हैं और ये विदेशी विश्वविद्यालयों और कंपनियों के साथ मिलकर कम से कम तीन दवा अनुसंधान कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं। डीआरएफ के चेयरमैन आनंद बर्मन का कहना है, ‘जेनेरिक (जिनका पेटेंट खत्म हो चुका है) कैंसर के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाओं के विकास कारोबार से जुड़े हुए सभी विज्ञानिकों को डाबर फार्मा में ले जाया जा रहा है।
डीआरएफ अब सिर्फ दवा अनुसंधान कार्यक्रमों पर ही ध्यान दे रहा है।’ उन्होंने गोपनीयता बनाए रखने के नियमों के कारण सहयोगपूर्ण अनुसंधान कार्यक्रमों की जानकारी देने से मना कर दिया, लेकिन इतना संकेत जरूरत दिया कि कम से कम एक अनुसंधान कैंसर के क्षेत्र में भी किया जाएगा।
उनका कहना है कि अपनी दवा कंपनी बेचने के बाद भी दवा अनुसंधान कार्य को जारी रखना सही है, क्योंकि डीआरएफ एक स्वतंत्र अनुसंधान कंपनी में तब्दील होने वाला है। फ्रेसीनियस के 11 अगस्त को डाबर खरीद लेने के साथ ही कंपनी के पास डीआरएफ के मौजूदा सभी उत्पादों पर भी अधिकार है। बर्मन का कहना है, ‘सभी अनुसंधान जो अंतिम रूप ले चुके हैं फ्रेसीनियस को चले जाएंगे। इसमें पेटेंट प्राप्त कर चुके नैनोटेक्नोलॉजी पर आधारित दवा डिलीवरी सिस्टम और डीआरएफ में जेनेरिक दवा अनुसंधान में लगे हुए विज्ञानिक भी शामिल हैं।’