एक कमजोर बाजार में प्रमुख औषधि कंपनी डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज के शेयर की चाल वेरारिंग के लिए अमेरिकी औषधि नियामक यूएसएफडीए की मंजूरी पर निर्भर थी। यह उत्पाद मर्क की महिला गर्भ निरोधक नुवारिंग का जेनेरिक संस्करण है।
कंपनी के लिए इसे काफी सकारात्मक माना जा रहा है क्योंकि उसे काफी देरी से यह मंजूरी मिली है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के अनुसार, अमेरिका में नुवारिंग का कुल बाजार करीब 80 करोड़ डॉलर का है और डॉ रेड्डीज के लिए यह एक उल्लेखनीय बिक्री का अवसर है। कंपनी अमेरिकी बाजार में इस दवा को उतारने वाली चौथी जेनेरिक कंपनी है। कंपनी की कुल बिक्री में नुवारिंग का योगदान करीब 40 फीसदी है।
हालांकि इन नवोन्मेषी एवं प्राधिकृत जेनेरिक दवा की बाजार हिस्सेदारी 45 फीसदी है लेकिन नोमुरा रिसर्च के सायन मुखर्जी और प्रतीक मंधाना का मानना है कि मौजूदा जेनेरिक मूल्य निर्धारण के लिहाज से इस बाजार का आकार करीब 30 करोड़ डॉलर है। आगे कीमत में 20 फीसदी की गिरावट और 10 से 15 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के मद्देनजर नोमुरा का मानना है कि डॉ रेड्डीज 2.5 से 3.5 करोड़ डॉलर की सालाना बिक्री दर्ज कर सकती है।
हालांकि इस मंजूरी का कंपनी की प्रति शेयर आय (वित्त वर्ष 2023 की आय में 2.5 फीसदी तक) पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन नोमुरा के मुखर्जी और मंधाना का मानना है कि ये जटिल मंजूरियां कंपनी को अत्यधिक प्रतिस्पर्धा वाले अमेरिकी बाजार में वृद्धि जारी रखने के लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेंगी। उन्होंने कहा कि इससे कंपनी की निष्पादन दक्षता में निवेशकों का विश्वास भी बढ़ेगा।
अमेरिका में कंपनी की जटिल दवाओं को लॉन्च करने संबंधी अनिश्चितता से निवेशकों की धारणा प्रभावित हो रही थी। परिणामस्वरूप यह शेयर पिछले साल के मुकाबले 8.4 फीसदी लुढ़क गया था जबकि बीएसई हेल्थकेयर सूचकांक में 19 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। अब कंपनी ने छह महीने के इंतजार के बाद नुवारिंग जेनेरिक के लिए मंजूरी हासिल की है। ऐसे में बाजार की नजर उच्च रक्तचाप की दवा रेमोडुलिन, आयरन सुक्रोज, विभिन्न स्क्लेरोसिस की जेनेरिक दवा कोपैक्सोन आदि के लॉन्च की समय-सीमा पर रहेगी।
डॉ रेड्डीज के शेयर के लिए एक अन्य नकारात्मक बात विभिन्न विनिर्माण इकाइयों के लिए यूएसएफडीए की मंजूरी का अभाव है। इससे दवाओं के लॉन्च में देरी हो सकती है और अनुपालन लागत बढ़ सकती है। हाल में अमेरिकी औषधि नियामक ने आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में कंपनी के दुव्वाडा संयंत्र को 8 आपत्तियों के साथ फॉर्म 83 जारी किया था।
हालांकि डेटा इंटेग्रिटी की कोई समस्या नहीं है लेकिन एडलवाइस रिसर्च के विश्लेषकों का कहना है कि स्थिति खराब होने पर आधिकारिक कार्रवाई शुरू की जा सकती है। ब्रोकरेज का मानना है कि यह एक स्टेराइल इंजेक्टेबल संयंत्र है और ऐसे में माइक्रोबायल प्रदूषण एकमात्र सबसे बड़ा जोखिम है। इसके फॉर्मूलेशन और ऐक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट संयंत्र के लिए मंजूरी काफी महत्त्वपूर्ण होगी क्योंकि वैश्विक महामारी के कारण अमेरिकी औषधि नियामक के निरीक्षण की रफ्तार थोड़ी सुस्त पड़ गई है।
मूल्य निर्धारण पर अधिक दबाव, अमेरिकी बाजार में दवाओं के लॉन्च में देरी और विनिर्माण संयंत्रों में अनुपालन संबंधी मुद्दे कंपनी की राह में बाधा बनकर खड़े हैं लेकिन कंपनी फिलहाल भारत सहित उभरते बाजारों में उच्च वृद्धि दर को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। ऐसे में उसकी मौजूदगी बढ़ सकती है, बिक्री उत्पादकता में सुधार हो सकता है, नए लॉन्च और काउंटर पर बिकने वाली दवाओं से वृद्धि को रफ्तार मिल सकती है।
बहरहाल, तमाम कारकों को देखते हुए निवेशकों को इस शेयर में दांव लगाने से पहले भारत और अमेरिकी बाजार में उसके प्रदर्शन में निरंतर सुधार का इंतजार करना चाहिए।
