तमाम देशों को परेशान कर रही मंदी जल्द ही आपका नशा भी हिरन कर सकती है।
दरअसल माना जा रहा है कि मंदी की लपेट में जल्द ही मदिरा यानी शराब बनाने वाली कंपनियां भी आ जाएंगी, इसलिए उनके उत्पाद अब महंगे होने जा रहे हैं। मंदी और कच्चे माल में आई महंगाई के कारण वर्ष 2008-09 में मदिरा 8 से 10 प्रतिशत तक महंगी हो जाएगी।
अभी तक बोतल में बंद एल्कोहल यानी शराब की कीमतें सरकार ही तय करती है।?शराब निर्माता अपने विभिन्न ब्रांडों की कीमतें फरवरी-मार्च में सरकार के पास पेश करते हैं। इन्हें हर साल के अप्रैल महीने तक सरकार मंजूर करती है। इसके बाद पूरे साल हरेक ब्रांड की कीमत उतनी ही बनी रहती है।
बोतल बंद शराब (व्हिस्की, रम, वोदका) पर छा रही महंगाई के बारे में इंडिया ग्लाइकॉल्स के अध्यक्ष आई बी लाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि बोतल बंद शराब की कीमतों में अगले वित्त वर्ष के दौरान 8 से 10 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होगी। इसकी वजह बताते हुए लाल ने कहा कि अगले साल भी उत्पादन लागत में कमी केआसार नहीं दिख रहे हैं, जिसकी वजह से कीमतों में बढ़ोतरी का होना लाजिमी है।
उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होने के पीछे कई कारण रहें हैं। मसलन शीरा जिसकी अल्कोहल में हिस्सदारी 81 प्रतिशत तक की होती है, की कीमतों को प्रति क्विंटल 350 रुपये से बढ़ाकर 600 रुपये कर देना इनमें से एक कारण प्रमुख कारण रहा है। पिछले नौ महीनों केदौरान पैकेजिंग के खर्च में भी 15 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है।
इसकेअलावा सेवा करों के तहत आनेवाले क्षेत्रों में इजाफा किया गया है, जिससे सुरक्षा और वितरण एजेंसियों पर 12.36 प्रतिशत तक का सेवा कर लगाया जा रहा है। लाल का कहना है कि पिछले साल की तरह इस बार भी गन्ने की पेराई में देरी हुई है जिससे कि मोलेसेस केउत्पादन में 20 प्रतिशत तक की कमी आएगी।
गन्ने की पेराई में देरी की वजह न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेक र राज्य सरकारों और चीनी मिल मालिकों के बीच चल रहा टकराव ही है। गन्ने का समर्थन मूल्य 81 रुपये प्रति मीट्रिक टन है, जबकि राज्य सरकार इसे पिछले साल के मूल्य 125 रुपये प्रति मीट्रिक टन से बढ़ाकर 140 रुपये प्रति मीट्रिक टन कर चुकी है। इस मसले पर चीनी मिल मालिक अदालत में पहुंच चुके हैं। अदालत 18 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी। इसकेबाद गन्ने की पेराई फिर से शुरू हो पाएगी।
चालू वित्त वर्ष के दौरान भी कंपनियों और छोटे ब्रांडों के बहीखातों में लागत और मंदी का असर देखने को मिला है।?कमोबेश सभी के मुनाफे में गिरावट ही दर्र्ज की गई है। इस बारे में लाल कहते हैं कि चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में प्रॉफिट मार्जिन में 5 से 10 प्रतिशत की गिरावट आई है और इसके अलावा 5 प्रतिशत के प्रॉफिट मार्जिन पर काम करनेवाले छोट ब्रांडों को काफी घाटा हो रहा है। इन छोटे ब्रांडों का 190 मिलियन केसेस उद्योग में 30 प्रतिशत का योगदान होता है।