बंबई उच्च न्यायालय ने ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज को सबसे बड़ी शेयरधारक इन्वेस्को की मांग पर अपने शेयरधारकों की असाधारण आम बैठक (ईजीएम) बुलाने से आज रोक दिया। ज़ी ने मौजूदा प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी पुनीत गोयनका को कंपनी के निदेशक मंडल से हटाने तथा छह नामितों को नियुक्त करने के लिए ईजीएम बुलाने की इन्वेस्को की मांग पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।
वकीलों ने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के बाद इन्वेस्को की याचिका पर राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट में सुनवाई का अब कोई मतलब नहीं रह जाएगा। एनसीएलटी ने इन्वेस्को की याचिका पर बुधवार को सुनवाई मुकर्रर की थी। हालांकि इन्वेस्को के पास सर्वोच्च न्यायालय में जाने और उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने का विकल्प है।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अगर किसी शेयरधारक के प्रस्ताव से कंपनी के परिचालन में समस्या आती है तो ऐसे प्रस्ताव को मंजूरी देने या उस पर विचार करने की कोई तार्किक वजह नहीं है। आदेश में कहा गया है, ‘शेयरधारकों के प्रभुत्व या वर्चस्व का मतलब यह नहीं है कि वे कंपनी को गलत तरीके से चलाएं। अगर कोई उपयुक्त कानूनी प्रस्ताव लाया जाता है तो उससे कंपनी या कारोबार के मुनाफे में कमी आ सकती है। यह अदालत की चिंता का विषय नहीं है मगर प्रस्ताव वैध होने चाहिए।’
इन्वेस्को ने अपनी याचिका में कहा था कि अदालत प्रस्ताव की वैधता का मूल्यांकन नहीं कर सकती। इस पर एकल पीठ के न्यायाधीश जीएस पटेल ने कहा कि यह कवायद निरर्थक है। ज़ी ने अपनी याचिका में कहा था कि 11 सितंबर को इन्वेस्को और उसके सहायक फंड ओएफआई ग्लोबल चाइना का ईजीएम बुलाने का अनुरोध अवैध, अमान्य और कानून के मुताबिक क्रियान्वयन के अयोग्य है। ज़ी ने आग्रह किया था कि ईजीएम की मांग खारिज करने की कार्रवाई को उपयुक्त करार दिया जाए। कंपनी ने इन्वेस्को द्वारा आगे और नोटिस भेजे जाने पर भी रोक लगाने की मांग की थी।
न्यायालय ने कहा कि सारा विवाद कंपनी अधिनियम के ‘अनुच्छेद 100’ के इर्द-गिर्द घूम रहा है। इस अनुच्छेद के तहत ईजीएम बुलाने का प्रावधान है। निदेशक मंडल किसी भी समय ईजीएम बुला सकता है मगर कंपनी में कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले शेयरधारक भी ईजीएम बुलाने का अधिकार रखते हैं। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि निदेशक मंडल निर्धारित समय (ईजीएम बुलाने की मांग संबंधी पत्र मिलने के 45 दिनों के भीतर) में ईजीएम बुलाएगा। ईजीएम में जिन बातों पर विचार होगा वे पहले से तय होनी चाहिए। ईजीएम बुलाने के प्रस्ताव पर इसकी मांग करने वाले सभी लोगों के हस्ताक्षर होने चाहिए और उसके बाद प्रस्ताव कंपनी के पंजीकृत कार्यालय में भेजा जाना चाहिए। निदेशक मंडल के पास ईजीएम बुलाने के लिए 21 दिनों का समय होता है। अनुच्छेद के अनुसार निदेशक मंडल इस अवधि में कोई निर्णय नहीं लेता है तो प्रस्तावकों को बैठक बुलाने के संबंध में किए गए अनुरोध की तारीख से तीन महीनों के भीतर बैठक करने का अधिकार है।
इन्वेस्को का कहना था कि किसी प्रस्ताव पर निर्णय लेने का अधिकार निदेशक मंडल या कंपनी के पास नहीं है। इन्वेस्को के अनुसार किसी प्रस्ताव को पारित करने या नहीं करने पर निर्णय शेयरधारकों की आम बैठक में होगा। कंपनी ने अपने जवाब में कहा कि ईजीएम बुलाने का अधिकार कंपनी या निदेशक मंडल की मर्जी पर निर्भर नहीं करेगा। आदेश में कहा गया कि अगर कोई प्रस्ताव ‘निष्प्रभावी’ है तो यह प्रभाव में नहीं आएगा मगर इसका यह कतई मतलब नहीं है कि ईजीएम बुलाने की मांग नहीं मानी जानी चाहिए।कंपनी संचालन और आंतरिक प्रबंधन ऐसा कोई आदेश जारी करने की इजाजत नहीं देते हैं। इन्वेस्को ने कहा कि पूरा मामला निराधार और कयासों पर आधारित है। इन्वेस्को ने उच्च न्यायालय के अधिकार का भी मुद्दा उठाया था। इस पर ज़ी ने कहा राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) को ऐसे प्रश्नों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।
