भारतीय कंपनी जगत अपनी बैलेंस शीट को दुरुस्त करने में जुटा हुआ है और 2020-21 में उसका कर्ज-इक्विटी अनुपात घटकर छह साल के निचले स्तर 0.59 पर आ गया। विश्लेषकों को उम्मीद है कि मौजूदा वित्त वर्ष मेंं इस अनुपात में और गिरावट आएगी, जिससे कंपनियोंं को ब्याज लागत घटाने में मदद मिलेगी और अंतत: उनका मुनाफा मजबूत होगा। वित्त वर्ष 21 में सूचीबद्ध फर्र्मों का कर्ज-इक्विटी अनुपात 0.73 फीसदी से घटकर 0.59 फीसदी पर आ गया। इस गिरावट की वजह वित्त वर्ष 21 में उनका कर्ज सालाना आधार पर 7 फीसदी कम होना है। मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के नोट में कहा गया है, वित्त वर्ष 21 को उस वर्ष के तौर पर याद किया जाएगा जब कंपनियोंं ने लाभ, नकदी प्रवाह के प्रबंधन और बैलेंस शीट में कर्ज घटाने पर ध्यान केंद्रित किया, ताकि कोविड महामारी से पडऩे वाले प्रभाव का प्रबंधन हो सके। विशेषज्ञोंं ने कहा, इस वित्त वर्ष में उनका शुद्ध कर्ज और घटेगा।
वित्त वर्ष 11 में कंपनी जगत की बकाया उधारी महज 6.3 लाख करोड़ रुपये थी, जो वित्त वर्ष 20 में बढ़कर 26 लाख करोड़ रुपये हो गई। इसके बाद वित्त वर्ष 21 में यह घटकर 24.4 लाख करोड़ रुपये रह गई। ये आंकड़े उन कंपनियों के हैं, जो एसऐंडपी बीएसई 500 इंडेक्स का हिस्सा हैं।
विशेषज्ञों ने कहा कि मौजूदा माहौल साल 2007-08 के तेजी के दौर से ठीक उलट है जब वित्तीय कर्ज और इस्तेमाल का स्तर ऊंचा था। हाल के वर्षों में भारतीय कंपनी जगत ने पूंंजीगत खर्च करीब-करीब बंद कर दिया है और नई पूंजी मुख्य रूप से कर्ज को समाप्त करने के लिए जुटाई है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंंशियल के चेयरमैन रामदेव अग्रवाल ने कहा, अभी भी कंपनियां कर्ज घटा रही हैं। एक समय में यह बदलेगा और कंपनियां पूंजीगत खर्च शुरू करेंगी। अर्थव्यवस्था में काफी बदलाव हो रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि हम गंभीर तौर पर शायद निजी क्षेत्र के पूंजीगत खर्च के चक्र में पहुंच गए हैं और चीन के साथ हमारी कंपनियों के लिए विनिर्माण रणनीति अगले साल शुरू होगी। अर्थव्यवस्था में उधारी का उठाव रफ्तार पकड़ेगा जब देश खुल जाएगा और उपभोक्ता व कंपनियों का भरोसा लौटेगा। भारतीय कंपनी जगत के कर्ज घटाने के जतन को प्राथमिक बाजारों से अहम सहारा मिल रहा है।
