सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को 25 प्रतिशत न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (एमपीएस) मानकों से छूट देने का ढांचा तैयार करने के मसले पर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी), वित्त मंत्रालय से परामर्श कर रहा है। यह कदम निष्पक्षता सुनिश्चित करने और सरकार द्वारा हाल में की गई व्यवस्था के स्वैच्छिक इस्तेमाल से बचने के लिए उठाया जा रहा है।
सरकार के दो अधिकारियों ने कहा, ‘सरकारी फर्मों के श्रेणीकरण के लिए एक ढांचा तैयार किया जाएगा, जिसके आधार पर हिस्सेदारी कम करने के मामले में एक समय सीमा के साथ छूट मिल सकेगी।’ उन्होंने कहा, ‘यह सबके लिए छूट नहीं है और मामलों के आधार पर यह छूट दी जाएगी।’
इस समय सभी सूचीबद्ध कंपनियों को न्यूनतम 25 प्रतिशत सार्वजनिक हिस्सेदारी बनाए रखनी पड़ती है।
शनिवार को केंद्र सरकार ने मौजूदा मानकों में एक प्रावधान किया गया है, जिसमें कहा गया है, ‘जन हित में यह हो सकता है’ कि किसी सूचीबद्ध सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को इस नियम के किसी या सभी प्रावधानों से छूट मिले। यह वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने अधिसूचित किया है।
यह कदम 31 अगस्त की अंतिम तिथि के पहले आया है, जब सूचीबद्ध फर्मों को नियम का अनुपालन अनिवार्य होगा। बहरहाल सरकार की अधिसूचना में मानदंडों का उल्लेख नहीं है, जिसके आधार पर फर्में छूट पा सकती हैं।
इसकी तार्किकता को स्पष्ट करते हुए सूत्रों ने कहा कि नए प्रावधान से सरकार विनिवेश के सही वक्त को देखते हुए समयसीमा तय करने की छूट मिल जाएगी। सूत्रों ने कहा कि सार्वजनिक हिस्सेदारी को बरकरार रखने के लिए सरकार को पीएसयू में दबाव में बिकवाली करनी पड़ सकती है, जिसके पक्ष में वे नहीं हैं।
उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक निजीकरण केंद्र सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है, ऐसे में इस तरह की छूट से निवेशकों की दिलचस्पी सरकारी बैंकों में बढ़ेगी, जिनका निजीकरण होना है। उन्होंने कहा, ‘अधिग्रहण करने वाले को अपनी हिस्सेदारी कम करने के लिए लंबा वक्त दिया जा सकता है। इस लचीली व्यवस्था से निवेशकों का ध्यान आकर्षित हो सकता है।’
इसके अलावा भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) जैसी बड़ी कंपनियां, जो आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) लाने की तैयारी कर रही हैं, उनके द्वारा अपने शेयरों का छोटा हिस्सा सार्वजनिक निर्गम के माध्यम से पेश किए जाने की संभावना है, उन्हें भी लाभ होगा।
बहलहाल एलआईसी इसकी तात्कालिक लाभार्थी नहीं होगी क्योंकि बाजार नियामक ने फरवरी में पहले ही सि तरह की बड़ी फर्मों को एमपीएस मानकों में छूट दे दी थी, जो सूचीबद्धता का विकल्प अपना रही हैं। इसमें कहा कहा है कि बड़ी कंपनियां आईपीओ में 10 प्रतिशत के बजाय न्यूनतम 5 प्रतिशत विनिवेश कर सकती हैं। इसके अलावा उन्हें सार्वजनिक हिस्सेदारी बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने के लिए 3 साल के बदले 5 साल दिए जाएंगे। पहले के मानकों के आधार पर एलआईसी को एक बार में कम से कम 10 प्रतिशत विनिवेश करने की जरूरत होगी।
बैंक आफ इंडिया, बैंक आफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया, यूको बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, पंजाब ऐंड सिंध बैंक सहित आधे दर्जन बैंक हैं, जिनकी 30 जून तक सरकारी हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से ज्यादा थी।
जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन आफ इंडिया (जीआईसी आरई), न्यू इंडिया एश्योरेंस में हिस्सेदारी 85 प्रतिशत से ज्यादा है। इसके अलावा हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स और हाउसिंग ऐंड अर्बन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (हुडको) भी उनमें शामिल हैं, जो अनुपालन नहीं कर रही हैं और 75 प्रतिशत से ऊपर सीमा है।
