वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) की सूचीबद्ध भारतीय सहायक इकाइयों ने कैलेंडर वर्ष 2021/वित्त वर्ष 2022 में अपनी पैतृक कंपनियों को रॉयल्टी और टेक्नीकल शुल्क भुगतान के तौर पर करीब 7,000 करोड़ रुपये खर्च किए। कैपिटालाइन डेटाबेस के अनुसार, करीब आधी से ज्यादा रकम (3,770 करोड़ रुपये) यूरोपीय और अमेरिकी एमएनसी की घरेलू सहायक इकाइयों द्वारा चुकाई गई थी, जिनमें हिंदुस्तान यूनिलीवर, नेस्ले इंडिया, कोलगेट-पामोलिव, बीएएसएफ इंडिया, और बॉश मुख्य रूप से शामिल थीं।
इन एमएनसी की भारतीय सहायक इकाइयों ने अब तक अपनी पैतृक कंपनियों को रॉयल्टी और टेक्नीकल शुल्कों के भुगतान पर 10 प्रतिशत की दर से विदहोल्डिंग कर चुकाया है। सोमवार को संसद में पारित वित्त विधेयक में विदहोल्डिंग कर की दर अब दोगुनी कर 20 प्रतिशत की गई है। हालांकि इस वृद्धि का कई भारतीय सहायक इकाइयों पर काफी कम विततीय प्रभाव पड़ने का अनुमान है। विदहोल्डिंग कर स्रोत पर काटा जाने वाला एक तरह का कर है, जिसके लिए रॉयल्टी या टेक्नीकल शुल्क का भुगतान करने वाली कोई भारतीय कंपनी तय दर पर कर काटती है। यह कर भुगतानकर्ता द्वारा चुकाया जाता है और भुगतान प्राप्त करने वाले पर नहीं लगता है।
भारत ने दुनिया में 96 देशों के साथ कर समझौते कर रखे हैं जिससे रॉयल्टी और टेक्नीकल शुल्क के भुगतान पर विदहोल्डिंग कर कई देशों के साथ 10 प्रतिशत पर सीमित है। इनमें दुनिया के कई देश शामिल हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया, चीन, फ्रांस, जर्मनी, ओर स्विटजरलैंड मुख्य रूप से शामिल हैं। भारत में परिचालन कर रही कई एमएनसी इन्हीं कुछ प्रमुख देशों से हैं।
सूचीबद्ध क्षेत्र में, वित्त वर्ष 2022 में मारुति सुजूकी रॉयल्टी और टेक्नीकल शुल्कों (3,005 करोड़ रुपये) पर खर्च करने वाली सबसे बड़ी कंपनी थी, जिसके बाद हिंदुस्तान यूनिलीवर (852 करोड़ रुपये) का स्थान रहा। इस सूची में अन्य कंपनियां थीं नेस्ले इंडिया, कोलगेट-पामोलिव, बॉश, हिताची एनर्जी, एबीबी, पीऐंडजी हाइजीन, शेफलर इंडिया, और एकजो नोबल। इन 10 कंपनियों ने कैलेंडर वर्ष 2021/वित्त वर्ष 2022 में रॉयल्टी और टेक्नीकल शुल्कों पर संयुक्त रूप से 5,120 करोड़ रुपये खर्च किए। आरबीआई के अनुसार, देश में सभी कंपनियों (सूचीबद्ध और गैर-सूचीबद्ध) ने वित्त वर्ष 2022 में बौद्धिक संपत्ति के इस्तेमाल के लिए रॉयल्टी और टेक्नीकल शुल्कों पर संयुक्त रूप से 9.04 अरब डॉलर या करीब 68,551 करोड़ रुपये खर्च किए।
इसे ध्यान में रखते हुए विश्लेषकों का कहना है कि कई एमएनसी की भारतीय सहायक इकाइयां कर संधियों के प्रावधानों का इस्तेमाल करेंगी और 10 प्रतिशत की पूर्ववर्ती दर पर विदहोल्डिंग कर का भुगतान बरकरार रखेंगी। हालांकि इससे उनकी अनुपालन लागत बढ़ जाएगी, क्योंकि पैतृक कंपनी को अब भारत के कर समझौते वाले देशों में होना या वहां उसका मुख्यालय होना अनिवार्य होगा। कई एमएनसी सिंगापुर और मॉरिशस जैसे क्षेत्रों में मौजूदा निवेश कंपनियों के जरिये अपनी भारतीय सहायक इकाइयों में स्वामित्व रखती हैं। वित्त विधेयक में कर दर बढ़ने के बाद, कुछ एमएनसी को अपनी भारतीय सहायक इकाइयों के स्वामित्व ढांचे को पुनर्गठित करना पड़ सकता है, जिस पर बड़ी अनुपालन और नियामकीय लागत आएगी।
विदहोल्डिंग कर दर दोगुनी होने से इटली और डेनमार्क की एमएनसी की भारतीय सहायक इकाइयों पर ज्यादा दबाव पड़ेगा।