कंपनियों द्वारा पूंजी जुटाने के रुझान से पता चलता है कि विशेष तौर पर बेहतर रेटिंग वाली कंपनियां अपनी पूंजी जरूरतों के लिए स्थायी रूप से बॉन्ड बाजार का रुख कर सकती हैं और बैंक के कर्ज पर निर्भरता घटा सकती हैं। हालांकि सभी कंपनियों के साथ ऐसा नहीं है क्योंकि ‘ए’ से कम रेटिंग वाली कंपनियां अब भी पूंजी के लिए काफी हद तक बैंकों पर निर्भर हैं।
कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार में वित्तीय कंपनियों का वर्चस्व बना हुआ है, लेकिन पिछले एक साल के दौरान गैर-वित्तीय कंपनियों ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। इसकी वजह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा पिछले साल दीर्घावधि रीपो परिचालन (एलटीआरओ) फंड और लक्षित एलटीआरओ या टीएलटीआरओ के माध्यम उपलब्ध कराई गई सुविधा है। कंपनियां इन माध्यमों से तीन साल तक के लिए पूंजी जुटाती हैं और नया कर्ज बढ़ाने से परहेज कर रही हैं, खास तौर पर ऐसे समय में जब उनके संयंत्रों की क्षमता का उपयोगिता स्तर 70 फीसदी से कम है।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के लिए तो यह सच है। महामारी की दूसरी लहर ने ग्राहकों की मांग घटा दी और कंपनियां अपनी पूंजी व्यय योजना बढ़ाने में हिचक रही हैं। हालांकि बीते वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही में जब महामारी का असर कम हुआ और लॉकडाउन में ढील दी गई थी तब इन कंपनियों ने जमकर पूंजी जुटाई है। 31 दिसंबर, 2020 को समाप्त तीसरी तिमाही में गैर-वित्तीय कंपनियों ने बाजार से 2.10 लाख करोड़ रुपये जुटाए थे और चौथी तिमाही में यह आंकड़ा बढ़कर 3.1 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया। गैर-वित्तीय कंपनियों ने कॉर्पोरेट बॉन्ड से 2019-20 की तीसरी तिमाही में 1.5 लाख करोड़ रुपये और चौथी तिमाही में 1.91 लाख करोड़ रुपये जुटाए थे।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि सबसे ज्यादा फायदा सरकारी कंपनियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को हुआ क्योंकि बॉन्ड बाजार में एएए रेटिंग वाले बॉन्ड जारी करने में उनका वर्चस्व है। गिनी-चुनी निजी कंपनियों को ही सरकारी कंपनियों की तरह कम दरों का लाभ मिल पाया।
कंपनियों के मुख्य वित्त अधिकारियों का कहना है कि इस समय तुलनात्मक रूप से बेहतर रेटिंग वाली कंपनियां रकम जुटा रही हैं क्योंकि बॉन्ड फिलहाल बैंक ऋणों के मुकाबले 150 से 250 आधार अंक सस्ते हैं। दूसरी अहम बात यह है कि उनसे जुटाई गई रकम के लिए नियम-शर्तें भी उतनी कड़ी नहीं हैं।
इस बारे में बजाज समूह के पूर्व समूह वित्त निदेशक प्रवाल बनर्जी ने कहा, ‘बैंक इस समय एनबीएफसी को ऋण देने में परहेज कर रहे हैं, इसलिए बॉन्ड से रकम जुटाने की प्रक्रिया तेज हो गई है। कोविड-19 महामारी की वजह से एनबीएफसी की ऋण गुणवत्ता में कमी आई है, जिस कारण बैंक उन्हें ऋण देने में हिचक रहे हैं।’ मई 2020 में एएए रेटिंग प्राप्त कॉर्पोरेट बॉन्ड पर प्रतिफल 6.85 प्रतिशत था, जो अप्रैल 2021 में कम होकर 5.38 प्रतिशत हो गया और मई 2021 में यह और घटकर 5.16 प्रतिशत हो गया। फिलिप कैपिटल में कंसल्टेंट (फिक्स्ड इनकम) जयदीप सेन के अनुसार ने कहा कि कॉर्पोरेट बॉन्ड और इतनी ही परिपक्वता अवधि वाली सरकारी प्रतिभूतियों पर बॉन्ड प्रतिफलों के बीच अंतर मई 2020 के 205 आधार अंक से कम होकर मई 2021 में 24 आधार अंक रह गया।
हालांकि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कम कॉर्पोरेट बॉन्ड आए हैं, लेकिन किसी भी वित्त वर्ष की पहली छमाही में यह रुझान दिखता है। कंपनियों के पास टीएलटीआरओ के जरिये आई रकम भी बची है।
गैर-वित्तीय कंपनियों ने पहली तिमाही में 1 लाख करोड़ रुपये से कुछ अधिक रकम जुटाई है, जो पिछले वर्ष की समान तिमाही का लगभग आधा है। सेन ने कहा, ‘2020 में उधार ली गई रकम 2023 तक कंपनियों के काम आएगी। कंपनियों को रकम की जरूरत तो है, लेकिन पहले जितनी नहीं है। कंपनियों को कारोबार जारी रखने के लिए रकम की जरूरत है मगर कारोबार विस्तार के लिए उन्हें यह नहीं चाहिए।’