समूह की इकाइयों के साथ लेनदेन करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास ऐसे सौदों के लिए तीन हफ्ते से भी कम बचे हुए हैं। बताया जाता है कि महामारी ने मूल्यांकन की अनिश्चितता पैदा की, जो संभावित कर विवाद का दरवाजा खोल सकता है।
साल की पहली तीन तिमाहियों की सूचना पर भरोसा और आर्थिक आंकड़ों के आधार पर फैसला लेेने समेत सही निर्धारण के लिए कंपनियां विभिन्न तरीकों पर विचार कर रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वह इस प्रक्रिया को 15 मार्च तक पूरा करना चाह रही हैं, जो कंपनियों के लिए अग्रिम कर जमा कराने की आखिरी तारीख है। संबंधित पक्षकारों के बीच वस्तुओं व सेवाओं का ऐसा हस्तांतरण ट्रांसफर प्राइसिंग कहलाता है। कंपनियां ऐसे हस्तांतरण का इस्तेमाल कर में कमी के लिए कर सकती हैं, उदाहरण के लिए उच्च कर वाले क्षेत्र से लाभ का हस्तांतरण कम कर वाले क्षेत्र में करना। ऐसे में इन लेनदेनों का मूल्यांकन निष्पक्ष आधार पर किया जाना चाहिए।
डेलॉयट इंडिया के पार्टनर संजय कुमार ने कहा, पिछले साल के आंकड़ों के इस्तेमाल का पारंपरिक तरीका मोटे तौर लागू नहींं होगा क्योंकि साल 2020 पिछले वर्षों के सापेक्ष काफी अलग है, ऐसे में यह तुलनायोग्य नहीं है। ऐसे लेनदेन पर लागू होने वाला मार्जिन में शायद बदलाव आ गया होगा। केपीएमजी इंडिया के सीनियर पार्टनर हितेश गजारिया ने कहा, मौजूदा लक्षित मार्जिन को बनाए रखना या उसे संशोधित करना इस पर निर्भर करेगा कि कंपनी व उसके समूह और उद्योग पर कितना असर पड़ रहा है, जहां वे परिचालन कर रही हैं। साथ ही तुलनात्मक विश्लेषण की खातिर एतिहासिक तरीकों आदि के इस्तेमाल पर सावधानी बरतनी पड़ सकती है।
