लंबे विलंब के बाद, आदित्य बिड़ला समूह की इकाई ग्रासिम ने आखिरकार गुरुवार को अपना उर्वरक व्यवसाय बेच दिया। टाटा समूह द्वारा इस क्षेत्र को अलविदा कहे जाने के दो साल के अंदर ग्रासिम ने उर्वरक व्यवसाय की बिक्री की है। प्रतिफल में कमी और भारत सरकार से सब्सिडी भुगतान में विलंब को जिम्मेदार मानते हुए कंपनी ने अपना उर्वरक व्यवसाय बेचा है।
आदित्य बिड़ला समूह ने इंडोरामा कॉरपोरेशन को 2,649 करोड़ रुपये में यह व्यवसाय बेचा है जबकि टाटा केमिकल्स ने 2018 में अपना यूरिया व्यवसाय नॉर्वे की यारा फर्टिलाइजर्स को 2,682 करोड़ रुपये में बेचा था। हालांकि कंपनी के अधिकारियों ने इस नए सौदे को कोष जुटाने का प्रयास करार दिया है, लेकिन उद्योग के जानकारों का कहना है कि बेहद विनियमित क्षेत्र में घटता मार्जिन भारतीय कंपनियों द्वारा इस तरह की बिक्री का मुख्य कारण रहा है।
इस साल जून में, बीएसई पर सूचीबद्घ हुई जुआरी एग्रो केमिकल्स ने अपना गोवा उर्वरक संयंत्र 2,100 करोड़ रुपये में गैर-सूचीबद्घ कंपनी पारादीप फॉस्फेट्स को बचने का निर्णय लिया है। जुआरी एग्रो को अपने मुख्य उर्वरक व्यवसाय को लेकर संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है। जुआरी और उसकी भागीदारी ओसीपी गु्रप ऑफ मोरक्को की जुआरी मैरॉक फॉस्फेट्स प्राइवेट लिमिटेड (जेएमपीपीएल) में 50-50 प्रतिशत हिस्सेदारी है। जुआरी इस रकम का इस्तेमाल अपना कर्ज चुकाने में करेगी।
विश्लेषकों के अनुसार, उर्वरक क्षेत्र को चीन, ईरान और ओमान से सस्ते उत्पादों की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय कंपनियां अपना निवेश घटा रही हैं क्योंकि सरकार किसानों को उत्पादों की बिक्री के करीब 6-12 महीनों बाद उत्पादक को सब्सिडी चुकाती है। इसके परिणामस्वरूप, उर्वरक निर्माताओं के लिए लंबी कार्यशील पूंजी जरूरतें हैं जिनसे उनकी लागत बढ़ी है।
उद्योग के एक जानकार ने नाम नहीं बताने के अनुरोध के साथ कहा, ‘उर्वरक कंपनियां पूंजी के लिए सरकारी सब्सिडी पर निर्भर हैं और चूंकि ये सब्सिडी कई तिमाहियों के विलंब से जारी की जाती हैं जिससे कंपनी का मार्जिन और प्रदर्शन प्रभावित होता है। इसलिए भारतीय कंपनियों द्वारा व्यवसायों की बिक्री की गई है।’
इसके अलावा, वित्त वर्ष 2021 के दौरान वितरित की जाने वाली उर्वरक सब्सिडी भी 12 प्रतिशत तक घटकर 71,309 करोड़ रुपये रह गई है, जो उर्वरक उद्योग के लिए पर्याप्त साबित नहीं हो सकती है। रेटिंग फर्म केयर ने इस महीने के शुरू में कहा, ‘इससे सब्सिडी बकाया बढ़ सकता है जिससे उद्योग की नकदी स्थिति प्रभावित हो रही है।’
नए निवेशकों के लिए अच्छी खबर यह है कि इस साल अप्रैल-अगस्त के दौरान उर्वरक की बिक्री में 25 प्रतिशत तक का इजाफा दर्ज किया गया। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान यूरिया, डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और एमओपी म्यूरिएट ऑफ पोटाश) की बिक्री 6.5 प्रतिशत, 28 प्रतिशत और 15.6 प्रतिशत तक बढ़ी। केयर रेटिंग्स के अनुसार, वित्त वर्ष 2021 के शुरू में किसानों और डीलरों द्वारा खरीदारी की चिंता के साथ साथ जिंस की कम कीमतों से उर्वरक की बिक्री को बढ़ावा मिला।
