पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों और प्रदूषण की समस्या को देखते हुए तमाम कंपनियां अब बायोडीजल की ओर कदम बढ़ा रही हैं। निजी क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड आरआईएल और सरकारी तेल विपणन कंपनियां भी इस कतार में शामिल हैं।
डीजल में 20 फीसद गैर जीवाश्म ईंधन यानी बायोडीजल मिलाने की सरकार की योजना से भी इन कंपनियों के मंसूबों को रफ्तार मिल गई है।
गैर जीवाश्म ईंधन यानी जमीन के अंदर से नहीं मिलने वाले ईंधन में तकरीबन 150 कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई है।
मजे की बात है कि दो साल पहले महज 25 कंपनियां ऐसा करने की सोच रही थीं। अब बायोडीजल बनाने के लिए नई कंपनियां सामने आ रही हैं और उनकी परियोजना का आकार भी पहले से काफी ज्यादा है। विशेषज्ञों के मुताबिक 30 कंपनियां तो बहुत बड़े स्तर पर यह काम करने जा रही हैं।
इन कंपनियों के बायोडीजल संयंत्रों में उत्पादन क्षमता 30 टन से 300 टन प्रतिदिन तक होगी। इन्हें स्थापित करने में 30 से 300 करोड़ रुपये तक का निवेश किया जाएगा। लेकिन सभी कंपनियों की परियोजनाएं लगाने में होने वाले खर्च का अभी पता नहीं चल सका है।
हर जिले में संयंत्र
देश में बायोडीजल परियोजनाओं पर नजर रखने वाले गुजरात के एक गैर सरकारी संगठन एग्रीकल्चरल डाइवर्सिफिकेशन सेंटर के प्रबंध ट्रस्टी कल्पेश जानी ने कहा, ‘इन कंपनियों की तादाद भविष्य में बढ़ती ही जाएगी और देश के हरेक जिले में कम से कम एक बायोडीजल संयंत्र तो जरूर होगा। गांवों में बेकार जमीन बहुत ज्यादा है और ये कंपनियां खेती के लिए इस जमीन का इस्तेमाल कर सकती हैं।’
जटरोफा के बीज में से निकला तेल जब डीजल के साथ मिलाया जाता है, तो बायोडीजल बनता है। जटरोफा को देश भर में बेकार पड़ी जमीन पर उगाया जा सकता है। इसके अलावा बायोडीजल को वनस्पति तेल से भी बनाया जाता है, लेकिन उसकी देश में कमी है।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की ऐसी ही एक परियोजना से जुड़े अधिकारी ने कहा कि जटरोफा उगाने के लिए देश में तकरीबन 4 करोड़ हेक्टेयर जमीन है।
अगर इसमें से केवल एक चौथाई जमीन पर भी जटरोफा की खेती की जाती है, तो 2012 तक डीजल की खपत में 10 फीसद तक की कमी आ जाएगी।
आयात खर्च होगा कम
भारत में तेल की कुल खपत का तकरीबन 70 फीसद हिस्सा आयात के जरिये पूरा किया जाता है। सरकार इसमें बायोडीजल मिलाना चाहती है, ताकि आयात पर निर्भरता को कम किया जा सके और तेल के आयात पर हो रहा खर्च भी कम हो सके।
नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया है, जो जैव ईंधन की कीमत तय करने का काम करेगी। सरकार पहले ही बायोडीजल को घोषित वस्तुओं की सूची में शामिल कर चुकी है।
इन वस्तुओं पर सभी राज्यों में एकसमान 4 फीसद मूल्यवर्द्धित कर लगाया जाता है, इसीलिए सभी राज्यों में बायोडीजल की कीमत एक ही होगी।
इसके अलावा उसे दूसरे कई करों से भी छूट दे दी गई है, जिनके लिए तेल कंपनियों को तकरीबन 16 रुपये प्रति लीटर देने पड़ते हैं।
बायोडीजल बनाने के लिए तेल कंपनियों ने तैयारी पहले ही शुरू कर दी है। इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम दो राज्यों में 180,000 एकड़ से भी ज्यादा जमीन पर जटरोफा की खेती करने की योजना बना चुके हैं।
इंडियन ऑयल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने छत्तीसगढ़ सरकार के साथ इसके लिए साझे उपक्रम भी बनाए हैं।सूत्रों के मुताबिक आरआईएल भी छत्तीसगढ़ की सरकार के साथ हाथ मिलाने के लिए बातचीत कर रही है।
कृष्णा गोदावरी बेसिन में कंपनी ने काकीनाड़ा में 50 एकड़ जमीन पर जटरोफा की खेती शुरू भी कर दी है।भारत पेट्रोलियम ने हैदराबाद की कंपनी नंदन बायोमैट्रिक्स और शपूरजी पलोनजी कंपनी के साथ मिलकर एक नई कंपनी भारत रिन्युएबल एनर्जी बनाई है।
यह कंपनी उत्तर प्रदेश में 70,000 एकड़ जमीन पर जटरोफा की खेती कर बायोडीजल बनाएगी। अगले सात साल में 10 लाख टन बायोडीजल बनाने के लिए कंपनी की 2,300 करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना है।
उपलब्धता बेहद कम
लेकिन अभी कोई यह नहीं कह सकता कि डीजल में 20 फीसद मिश्रण की सरकारी योजना को पूरा करने लायक बायोडीजल का उत्पादन हो पाएगा या नहीं। जानकारों का कहना है, ‘भारत में बायोडीजल की उपलब्धता चिंता का विषय है।
इसलिए सरकार ने डीजल में 20 फीसद मिश्रण की योजना 2017 तक चरणबद्ध तरीके से लागू करने की बात कही है।’देश में कार का इस्तेमाल करने वालों की तादाद अगले दो दशकों में अच्छी खासी बढ़ने वाली है।
वर्ष 2006-07 में देश में 5.2 करोड़ टन डीजल की खपत थी, लेकिन 1011-12 में यह आंकड़ा बढ़कर 6.7 करोड़ टन होने का अनुमान है।
दुनिया भर में 2012 में 3.2 करोड़ टन बायोडीजल का उत्पादन होने की बात कही जा रही है, लेकिन भारत में इसका उत्पादन अभी महज 10,000 टन सालाना पर ही अटका है।
