फार्मा क्षेत्र की दिग्गज कंपनी सिप्ला लिमिटेड की कमाई कंपनी के निर्धारित लक्ष्य से 12-15 फीसदी कम होने की आशंका है।
विश्लेषकों के अनुसार मार्जिन पर पड़ रहे दबाव और मार्केट-टु-मार्केट घाटे के कारण कंपनी का कर के बाद लाभ कम हो सकता है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में फार्मा कंपनियों के मुनाफे की दर में मात्र 6 फीसदी की बढ़ोतरी ही हुई है।
आइसैक इक्विटी रिसर्च के विश्लेषक के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपने उत्पाद बेचने के लिए पार्टनरशिप मॉडल के कारण कंपनी अपने निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएगी। वित्त वर्ष 2007-08 में कंपनी ने 4,352 करोड़ रुपये की कमाई की थी।
जो कि वित्त वर्ष 2006-2007 के मुकाबले 18.62 फीसदी ज्यादा थी। वित्त वर्ष 2007-08 में कर के बाद 700.4 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। विश्लेषकों ने बताया, ‘अंतरराष्ट्रीय मंदी, बढ़ती प्रतिस्पर्धा, घटते मार्जिन के कारण हम सिप्ला के पार्टनरशिप मॉडल को लेकर ज्यादा आशावादी नहीं हैं।’
प्रभुदास लीलाधर के प्रमुख (शोध, फार्मा) के रंजीत कपाड़िया ने बताया, ‘मार्केट-टु-मार्केट नुकसान के कारण सिप्ला के मुनाफे में गिरावट आने की आशंका है।’ उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में कंपनी के राजस्व में 24 फीसदी और कर के बाद मुनाफे में 9.3 फीसदी की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।
एंजेल ब्रोकिंग की उपाध्यक्ष सरबजीत कौर नागरा ने बताया, ‘सिप्ला ने घोषणा कर ही दी है कि इस साल मार्जिन पर असर पड़ेगा। हमें कर के बाद में कंपनी के मुनाफे में 10.4 फीसदी की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।’ उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में सिप्ला का कर के बाद मुनाफा करीब 774.6 करोड़ रुपये रहेगा।
इस बारे में टिप्पणी करने के लिए सिप्ला के संयुक्त प्रबंध निदेशक अमर लुल्ला से बात नहीं हो पाई। आईसैक ने बताया कि पहली छमाही में कंपनी का प्रदर्शन अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहा। साल दर साल के आधार पर कंपनी के मुनाफे में 6 फीसदी की गिरावट आई थी।
जबकि कंपनी के राजस्व में 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। इसकी मुख्य वजह मुद्रा विनिमय दरों के कारण कंपनी को हुआ 180 करोड़ रुपये का नुकसान था। आइसैक ने कहा कि पहले सिप्ला के पार्टनरशिप मॉडल से कंपनी को काफी फायदा भी हुआ है।
लेकिन अंतरराष्ट्रीय जेनेरिक बाजार में विलय और अधिग्रहण के कारण प्रतिस्पर्धा और बढ़ गई है। जिससे 2005-06 के बाद से सिप्ला का मार्जिन घट रहा है। साल 2005 में सिप्ला की एक सहयोगी आईवैक्स लैब का अधिग्रहण टेवा ने कर लिया था।
इसके बाद सिप्ला ने अमेरिकी बाजार में कदम रखने की योजना बनाई। लेकिन पिछले 15 महीनों में कंपनी की कुल 6 जेनेरिक दवाओं को ही मंजूरी मिली है।