केंद्र सरकार ने एनएमडीसी लिमिटेड के साथ राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) के प्रस्तावित विलय को ‘ना’ कह दिया है।
केंद्रीय इस्पात मंत्रालय के सचिव प्रमोद कुमार रस्तोगी ने यह जानकारी दी है। आरआईएनएल ने कुछ वर्ष पहले देश की सबसे बड़ी लौह अयस्क निर्माता कंपनी एनएमडीसी के साथ विलय का प्रस्ताव रखा था। गैर-सूचीबद्ध आरआईएनएल विशाखापटनम इस्पात संयंत्र की मालिक है।
रस्तोगी ने इस बारे मे विस्तृत जानकारी देने से इनकार कर दिया। लेकिन उन्होंने कहा, ‘आरआईएनएल लंबे समय से एनएमडीसी के साथ विलय पर जोर देती रही है। लेकिन स्थिति का आकलन करने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है और इस विलय की संभावना नहीं दिख रही है।’
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम नवरत्न के साथ आरआईएनएल के विलय प्रस्ताव को लेकर पहले ही आशंका जता चुके हैं। उन्होंने पिछले साल विशाखापटनम में आरआईएनएल के विस्तार कार्य के उद्धाटन के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी में इसका विरोध किया था।
आरआईएनएल के पास कोई केप्टिव खदान नहीं है। इसे उच्च उत्पादन लागत और कम आपूर्ति के कारण बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसकी लौह अयस्क जरूरतें लंबी अवधि के ठेकों के जरिये एनएमडीसी द्वारा पूरी की जा रही हैं।
दूसरी तरफ एनएमडीसी की छत्तीसगढ़ के बैलाडिला और उड़ीसा में केप्टिव खदानें हैं और इसकी लौह अयस्क उत्पादन क्षमता 3 करोड़ टन की है। इसमें से कंपनी 34.7 लाख टन की आपूर्ति जापान और कोरिया की इस्पात मिलों को करती है। बाकी लौह अयस्क की आपूर्ति घरेलू इस्पात उत्पादकों को की जाती है।
रस्तोगी ने कहा कि एनएमडीसी ने लौह अयस्क की आपूर्ति के लिए कोरियाई और जापानी इस्पात मिलों से 96.5 फीसदी (लम्प अयस्क के लिए) और मूल्य बढ़ोतरी के रूप में 78.88 फीसदी प्राप्त किया।