सर्वोच्च न्यायालय ने आज कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कथित प्रतिस्पर्धी-रोधी गतिविधियों को लेकर एमेजॉन और फ्लिपकार्ट के खिलाफ भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की तरफ से शुरू की गई जांच को रोकने से इनकार कर दिया था। हालांकि अदालत ने फ्लिपकार्ट की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील डॉ. एएम सिंघवी के आग्रह पर सीसीआई जांच से जुडऩे का समय चार सप्ताह बढ़ा दिया। विधि प्लेटफॉर्म बार ऐंड बेंच के मुताबिक अदालत ने कहा, ‘हमें दखल देने का कोई आधार नजर नहीं आ रहा है। हालांकि हम जांच में शामिल होने की समयसीमा चार सप्ताह बढ़ाते हैं।’ इस मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को अलग रखने से इनकार करते हुए देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसे बड़े संगठन पूछताछ के लिए खुद आगे आएंगे और आप ऐसा नहीं चाहते हैं। आपको पेश होना होगा और जांच की इजाजत देनी होगी।’
वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम और साजन पूवय्या एमेजॉन की तरफ से पेश हुए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सीसीआई की तरह पेश हुए। मुख्य न्यायाधीश रमण और न्यायमूर्ति सूर्य कांत का पीठ ई-कॉमर्स कंपनियों फ्लिपकार्ट और एमेजॉन की कर्नाटक उच्च न्यायालय के 23 जुलाई के आदेश के खिलाफ याचिका की सुनवाई कर रहा था। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दोनों कंपनियों की सीसीआई जांच के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
पिछले महीने कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूॢत सतीश चंद्र शर्मा और नटराज रंगास्वामी के खंडपीठ ने अदालत के एकल न्यायाधीश के 11 जून के आदेश के खिलाफ ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा दायर याचिकाओं पर आदेश पारित किया था। विधि विशेषज्ञों ने कहा कि अब एमेजॉन और फ्लिपकार्ट दोनों को सीसीआई की गैर-प्रतिस्पर्धी जांच में सहयोग करना होगा। तकनीकी विधि कंपनी टेकलेजिस एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स के प्रबंध साझेदार सलमान वारिस ने कहा, ‘यह उनके लिए झटका है क्योंकि उनका कारोबारी मॉडल ऐसा है, जिस पर प्रतिस्पर्धी-रोधी गतिविधियों से संबंधित असर पड़ सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा इससे उन पर अनुपालना का कामकाज बढ़ेगा। अगर जांच उनके खिलाफ रही तो सीसीआई उन पर भारी जुर्माना लगा सकता है।’
विधि विशेषज्ञों ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला लंबी अवधि में एमेजॉन और फ्लिपकार्ट के लिए अनुपालना का बड़ा मुद्दा पैदा कर सकता है। उन्होंने कहा कि कंपनियां इसे कहीं भी चुनौती देने के लिए बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकती हैं। वारिस ने कहा, ‘वे समीक्षा की मांग कर सकती हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इससे कुछ बदलेगा क्योंकि अदालत मुश्किल से ही कभी अपने फैसले के खिलाफ जाती है।’
याचिकाओं को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ‘इस स्थिति में जांच को किसी भी तरह रद्द नहीं किया जा सकता है…याचियों को सीसीआई की जांच से डरना नहीं चाहिए…अदालत की विचार-विमर्श के बाद राय है कि याचियों द्वारा दायर याचिकाओं का कोई आधार नहीं है और इन्हें खारिज किया जाना चाहिए।’ एमेजॉन सीसीआई के आदेश के खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय गई थी। सीसीआई के इस आदेश में कहा गया था कि एमेजॉन के प्लेटफॉर्म पर स्मार्टफोन की ऑनलाइन बिक्री में गैर-प्रतिस्पर्धी जांच के आरोपों की जांच के लिए महानिदेशक (डीजी) स्तर की जांच होनी चाहिए।
सीसीआई को शिकायत करने वाला कारोबारियों का संगठन दिल्ली व्यापार महासंघ (डीवीएम) सीसीआई के जांच के फैसले को सही ठहरा रहा था। डीवीएम ने आरोप लगाया था कि ये प्लेटफॉर्म स्मार्टफोन की ऑनलाइन बिक्री में भारी छूट दे रहे हैं और खुद विक्रेता चुन रहे हैं। इसके अलावा अन्य उद्यमियों को कारोबार से बाहर करने के लिए अत्यंत कम कीमतों और विशेष साझेदारी के आरोप भी लगाए गए। डीवीएम कारोबारी संस्था अखिल भारतीय कारोबारी परिसंघ (कैट) से संबद्ध है। कैट ने सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया था।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, ‘अब सीसीआई के दोनों कंपनियों की जांच का रास्ता साफ हो गया है। यह अहम फैसला है और इससे न्याय मिला है। एमेजॉन और फ्लिपकार्ट के लिए जांच से बचने की कोई गुंजाइश नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘हम मांग करते हैं कि वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल सीसीआई को गहन जांच का निर्देश दें और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) को एमेजॉन को नोटिस भेजने का निर्देश दें और किसी तरह की हीला-हवाली की तिकड़मों को बर्दाश्त नहीं किया जाए। हम पीयूष गोयल से अपील करते हैं कि बिना किसी देरी के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत ई-कॉमर्स नियमों को लागू किया जाए।’
