भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने अमेरिकी रिटेल दिग्गज एमेजॉन के 2019 में फ्यूचर रिटेल के साथ किए गए सौदे पर आज रोक लगा दी। सीसीआई ने सौदे के दायरे और मकसद को लेकर जानबूझकर जानकारी छिपाने के आरोप में सौदा टाला है। सीसीआई ने 57 पृष्ठ के अपनेे आदेश में कहा है कि दोनों पक्षों के कारोबार को देखते हुए इस सौदे पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। इसके साथ ही प्रतिस्पर्धा-रोधी नियामक ने एमेजॉन पर 200 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया है। कंपनी को यह जुर्माना आदेश प्राप्त होने के 60 दिन के अंदर भरना होगा।
एमेजॉन के प्रवक्ता ने कहा, ‘सीसीआई के आदेश का हम अध्ययन कर रहे हैं और इसके बाद ही आगे के कदम का निर्णय किया जाएगा।’ आयोग ने अपने आदेश में कहा है कि एमेजॉन ने फ्यूचर समूह के साथ व्यावसायिक समझौता खास रणनीति और इस साझेदारी के जरिये भारत के रिटेल क्षेत्र में कदम रखने के मकसद से किया था। इसमें कहा गया है कि एमेजॉन ने मंजूरी लेने के दौरान फर्जी और गलत जानकारी दी थी।
टेकलेजिस एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसीटर्स में मैनेजिंग पाटर्नर सलमान वारिस ने कहा कि सीसीआई का अप्रत्याशित आदेश एमेजॉन के लिए बड़ा झटका है और इसका एमेजॉन ही नहीं पूरे भारतीय बाजार पर व्यापक असर पड़ेगा।
वारिस ने कहा, ‘आदेश के अनुसार सीसीआई ने इस सौदे पर नए सिरे से विचार करने के मकसद से यह आदेश दिया है और इस दौरान 2019 में दी गई मंजूरी स्थगित रहेगी।’
अगस्त 2019 में एमेजॉन ने करीब 1,500 करोड़ रुपये में फ्यूचर रिटेल की प्रवर्तक इकाई फ्यूचर कूपन्स में 49 फीसदी हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया था। इसके एक साल बाद अगस्त 2020 में फ्यूचर समूह ने रिलायंस इंडस्टीज के साथ 3.4 अरब डॉलर में संपत्ति की बिक्री का सौदा कर लिया। अक्टूबर में एमेजॉन ने फ्यूचर को आरआईएल के साथ सौदा करने पर कानूनी नोटिस भेजा था। उसने आरोप लगाया था कि फ्यूचर-रिलायंस का सौदा एमेजॉन के साथ किए गए करार का उल्लंघन है। एमेजॉन ने किशोर बियाणी की अगुआई वाली रिटेल शृंखला के साथ गैर-प्रतिस्पर्धी करार का भी हवाला दिया था। सौदे में उल्लेख किया गया था कि विवाद की स्थिति में मामला सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र के नियमों के तहत मध्यस्थता के जरिये सुलझाया जाएगा। मध्यस्थता केंद्र ने इस मामले में एमेजॉन के पक्ष में फैसला सुनाया।
इस साल अगस्त में सर्वोच्च न्यायालय ने एमेजॉन के पक्ष में फैसला सुनाया और सिंगापुर मध्यस्थता आदेश को भारत में प्रवर्तन योग्य करार दिया। लेकिन सितंबर 2021 में शीर्ष अदालत में फ्यूचर को राहत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय को कोई दंडात्मक आदेश पारित नहीं करने और साथ ही एनसीएलटी, सीसीआई और सेबी को चार हफ्ते तक इस मामले में अंतिम आदेश पारित नहीं करने का निर्देश दिया था। नवंबर में अदालत ने सीसीआई को कारण बताओ नोटिस के संदर्भ में आदेश जारी करने की अनुमति दे दी।
