केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) हिंदुस्तान जिंक (एचजेडएल) के विनिवेश की जांच के लिए एक नियमित मामला दर्ज करेगी। इसका विनिवेश 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में हुआ था। केंद्र सरकार ने एचजेएल में अपने नियंत्रण वाली हिस्सेदारी स्टरलाइट अपॉरच्यूनिटीज ऐंड वेंचर्स (एसओवीएल) को करीब 769 करोड़ रुपये में बेच दी थी। यह अनिल अग्रवाल की वेदांत रिसोर्सेज की एक इकाई है।
कई लेनदेन के बाद एसओवीएल की एचजेडएल में हिस्सेदारी 64.92 प्रतिशत हो गई, जबकि केंद्र की हिस्सेदारी 29.53 प्रतिशत है। अग्रवाल की लंबे समय से इस हिस्सेदारी पर नजर रही है और वह एचजेएल पर पूरा नियंत्रण चाहते हैं, जो 2002 के बाद से सरकारी कंपनी नहीं रह गई है।
हालांकि शीर्ष अदालत ने एचजेडएल में सरकार की बची हुई 29.5 प्रतिशत हिस्सेदारी की खुले बाजार में बिक्री की अनुमति दे दी। न्यायालय ने यह देखते हुए इसकी अनुमति दी कि अब एचजेडएल सरकारी कंपनी नहीं है, इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू)की बिक्री पर प्रतिबंध लागू नहीं होता है। केंद्र सरकार ने पहले अपने हलफनामे में कहा था कि शेष 29.54 प्रतिशत हिस्सेदारी बाजार के नियमों के मुताबिक बेची जाएगी।
न्यायालय ने कहा कि एचजेडएल के विनिवेश में हुई कथित अनियमितता की प्राथमिक जांच को एक नियमित केस के रूप में बदलने को लेकर की गई सिफारिश से अदालत संतुष्ट है और इस मामले में प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि इस मामले में नियमित केस दर्ज करने के सीबीआई के कई अधिकारियों के सुझाव देने के बावजूद प्राथमिक जांच बंद कर दी गई। पीठ ने सीबीआई को आदेश दिया कि उसे अदालत को समय-समय पर इस मामले में हुई प्रगति से अवगत कराना होगा।