सचिवों की अधिकार प्राप्त समिति (ईसीएस) ने केयर्न इंडिया को राजस्थान के तेल क्षेत्र से गुजरात के सागर तट तक बिछाई गई पाइपलाइन की लागत वसूलने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। क्षेत्र से कच्चे तेल की बिक्री के जरिये यह लागत वसूली जाएगी। यह पाइपलाइन 70 करोड़ डालर की लागत से बिछाई गई है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक ईसीएस ने पाइपलाइन की लागत को भी राजस्थान क्षेत्र के विकास की लागत में जोड़ने की अनुमति दे दी है। इस पर अंतिम फैसला केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति करेगी।
कंपनी इस 585 किलामीटर लंबी पाइपलाइन द्वारा राजस्थान के बारमेड़ से कच्चे तेल को गुजरात के सलाया तक ले जाएगी। गुजरात से यह तेल शोधन के लिए रिफाइनरियों तक पहुंचाया जाएगा। कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि अभी तक हमें सरकार की तरफ से इस बात पर कोई अंतिम फैसला नहीं मिला है। हम 2009 के अंत तक राजस्थान से तेल का उत्पादन शुरु करना चाहते हैं इसीलिए पाइपलाइन बिछाने के लिए सभी बड़े अनुबंध किए जा चुके हैं।
सरकार किसी भी कंपनी को तेल या गैस फील्ड विकसित करने में निवेश कीमत वसूलने के लिए तेल या गैस बेचने की अनुमति देती है। जैसे ही कं पनी अपनी यह लागत वसूल लेती है तब सरकार भी उस कंपनी द्वारा कमाये जा रहे मुनाफे में हिस्सेदार हो जाती है। यह क्षेत्र तेल के उत्पादन क्षेत्र से उसके बिकने वाले क्षेत्र तक होता है।
दरअसल राजस्थान क्रूड की आधिकारिक खरीददार मंगलूर रिफाइनरी ऐंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड ने कहा था कि वह 75 लाख टन उत्पादन में से मात्र 10 लाख टन तेल ही ले पाएगी। इसलिए यह प्रीहीटेड पाइपलाइन जरुरी हो गयी थी। कम तापमान पर जम जाने की प्रवृति के कारण तेल को गर्म पाइपलाइनों द्वारा पहुंचाया जाता है।
मंगलूर रिफाइनरी के पीछे हटने के बाद केयर्न और तेल और प्राकृतिक गैस निगम(ओएनजीसी) ने 2006 में अपनी पाइपलाइन बिछाने का फैसला किया था। केयर्न और ओएनजीसी के इस क्षेत्र में 30 फीसदी की भागीदारी है। पिछले साल तेल मंत्रालय ने केयर्न कंपनी को पाइपलाइन बिछाने की अनुमति दी थी।
सचिवों की अधिकार प्राप्त समिति (ईसीएस) ने केयर्न इंडिया को राजस्थान के तेल क्षेत्र से गुजरात के सागर तट तक बिछाई गई पाइपलाइन की लागत वसूलने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। क्षेत्र से कच्चे तेल की बिक्री के जरिये यह लागत वसूली जाएगी। यह पाइपलाइन 70 करोड़ डालर की लागत से बिछाई गई है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक ईसीएस ने पाइपलाइन की लागत को भी राजस्थान क्षेत्र के विकास की लागत में जोड़ने की अनुमति दे दी है। इस पर अंतिम फैसला केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति करेगी।
कंपनी इस 585 किलामीटर लंबी पाइपलाइन द्वारा राजस्थान के बारमेड़ से कच्चे तेल को गुजरात के सलाया तक ले जाएगी। गुजरात से यह तेल शोधन के लिए रिफाइनरियों तक पहुंचाया जाएगा। कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि अभी तक हमें सरकार की तरफ से इस बात पर कोई अंतिम फैसला नहीं मिला है। हम 2009 के अंत तक राजस्थान से तेल का उत्पादन शुरु करना चाहते हैं इसीलिए पाइपलाइन बिछाने के लिए सभी बड़े अनुबंध किए जा चुके हैं।
सरकार किसी भी कंपनी को तेल या गैस फील्ड विकसित करने में निवेश कीमत वसूलने के लिए तेल या गैस बेचने की अनुमति देती है। जैसे ही कं पनी अपनी यह लागत वसूल लेती है तब सरकार भी उस कंपनी द्वारा कमाये जा रहे मुनाफे में हिस्सेदार हो जाती है। यह क्षेत्र तेल के उत्पादन क्षेत्र से उसके बिकने वाले क्षेत्र तक होता है।
दरअसल राजस्थान क्रूड की आधिकारिक खरीददार मंगलूर रिफाइनरी ऐंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड ने कहा था कि वह 75 लाख टन उत्पादन में से मात्र 10 लाख टन तेल ही ले पाएगी। इसलिए यह प्रीहीटेड पाइपलाइन जरुरी हो गयी थी। कम तापमान पर जम जाने की प्रवृति के कारण तेल को गर्म पाइपलाइनों द्वारा पहुंचाया जाता है।
मंगलूर रिफाइनरी के पीछे हटने के बाद केयर्न और तेल और प्राकृतिक गैस निगम(ओएनजीसी) ने 2006 में अपनी पाइपलाइन बिछाने का फैसला किया था। केयर्न और ओएनजीसी के इस क्षेत्र में 30 फीसदी की भागीदारी है। पिछले साल तेल मंत्रालय ने केयर्न कंपनी को पाइपलाइन बिछाने की अनुमति दी थी।
सचिवों की अधिकार प्राप्त समिति (ईसीएस) ने केयर्न इंडिया को राजस्थान के तेल क्षेत्र से गुजरात के सागर तट तक बिछाई गई पाइपलाइन की लागत वसूलने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। क्षेत्र से कच्चे तेल की बिक्री क%