मंदी रूपी विलेन की पिटाई से रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री जैसे मुख्यधारा के भारतीय उद्योगों के चारों खाने चित होने के साथ ही कांच (सपाट )उद्योग जैसे सहायक उद्योगों की हालत भी खस्ता हो गई है।
भारतीय कांच उद्योग के सबसे बड़े खरीदार रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल उद्योग ही हैं। ऑल इंडिया ग्लास मैन्यूफैक्चर्स फेडरेशन के सचिव के.के. त्रिवेदी ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि कांच(सपाट)उद्योग के उत्पादन का 85 फीसदी हिस्से की खपत रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में होती है।
इसलिए रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में आकलित की गई 40 से 50 फीसदी गिरावट का असर सीधे तौर पर कांच उद्योग पर आया है। पिछले छह महीने में कांच(सपाट) के कारोबार में भी इसी अनुपात में गिरावट दर्ज की गई है।
त्रिवेदी ने बताया कि भारत में प्रतिदिन 2200 टन कांच (सपाट) की खपत होती है। लेकिन पिछले छह महीनों के भीतर ही इसकी खपत में 1300-1400 टन रह गई है। कांच (सपाट) का निर्माण करने वाली कंपनियों,जे.के. इंटरेनेशनल, गैलैक्सी और एआईएस के विपणन अधिकारियों ने बताया कि पिछले दो-तीन सालों से हमारा कारोबार 12 से 15 फीसदी की दर से बढ़ोतरी कर रहा था।
कांच(सपाट)की खपत भी प्रति व्यक्ति 800 ग्राम तक हो गई थी। जो कि पिछले चार से पांच साल पहले मात्र 300-400 ग्राम थी। लेकिन इस साल आई मंदी ने बाजार में कांच की मांग को खत्म 40 से 50 फीसदी तक खत्म कर दिया है।
रही-सही कसर चीन से सस्ती कीमतों में आयातित होने वाले कांच से मिल रही प्रतिस्पर्धा ने पूरी कर दी है। इस बाबत त्रिवेदी ने कहा कि अभी बाजार के हालात सुधरने में लगभग 1 साल तक का समय लग जाएगा। अगर इस बीच रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की मांग में और कमी आती है, तो इसका सीधा असर उद्योग पर पड़ना तय है।