भारतीय सूचना-प्रौद्योगिकी(आईटी) कंपनियों के लिए बड़े सौदे हथियाने की संभावना फिलहाल बहुत बेहतर नहीं दिखाई नहीं दे रही है। इसका कारण बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और बीमा क्षेत्र में उठा तूफान है जो अभी भी शांत लेने का नाम नहीं ले रहा है।
जब तक यह तूफान शांत नहीं होता है, भारतीय आईटी कंपनियों केलिए बड़े सौदे पाने की संभावना उतनी प्रबल नहीं दिखाई दे रही है। गौरतलब है कि पिछली छह तिमाहियों के 10करोड़ डॉलर वाले सौदों की संख्या में कोई सुधार नहीं हुआ है और इसमें गिरावट भी आई है।
इतना ही नहीं निवेश शोध कंपनी गोल्डमेन सैक्स के वर्ष 2009 में आईटी पर किए जाने वाले खर्च में कटौती की संभावना जताने के साथ ही बड़े सौदे हथियाने की राह और अधिक मुश्किल होती जा रही है।
अगर देश की अग्रणी आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी की बात करें तो इसने सितंबर 2008 को समाप्त हुई तिमाही तक अपने 10 करोड़ डॉलर वाले खंड में एक भी नया ग्राहक नहीं जोड़ पाई है जबकि 5 करोड़ डॉलर वाले खंड में अभी तक केवल एक ग्राहक जोडा है।
इसी तरह की कहानी इन्फोसिस की भी है और देश की इस दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी की 10 करोड़ डॉलर की कीमत वाले सौदों की संख्या सितंबर की दूसरी तिमाही में सिक्वेंशियल बेसिस पर छह से घटकर पांच के स्तर पर पहुंच गई है। इसी तरह एचसीएल ने भी समीक्षाधीन तिमाही में कोई भी क्लाइंट जोड़ पाने में सफल नहीं हो पाई है।
विश्लेषक भारतीय आईटी कंपनियों द्वारा बड़े सौदे हथियाने की संभावनाओं पर तुषारापात केलिए वैश्विक वित्तीय बाजार में हाल में आए जबरदस्त मंदी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वित्तीय संकट का प्रतिकूल असर बीएफएसआई सेगमेंट पर पडा है जिसका कि योगदान आईटी कंपनियों केराजस्व में 40 प्रतिश्त के आसपास होता है।
इस बाबत थोलोंस के प्रिंसिपल वीणू वी कर्था का कहना है कि 10 करोड़डॉलर वाले सौदे की संख्या में इजाफा होना मुश्किल प्रतीत हो रहा है क्योंकि यह ऐसे क्षेत्र है जिसपर कि सबसे पहले वैश्विक वित्तीय संकट का सीधा असर पडा है।
उन्होंने आगे कहा कि एक अच्छी बात यह है कि अभी तक किसी भी बड़े खिलाड़ी के इन सौदों से निकलने की बात सामने नहीं आई है। हालांकि उन्होंने कहा कि 25 मिलियन डॉलर और उससे कुछ अधिक बड़े सौदों केलिए क्लाइंटों का आना जारी रहेगा।
विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की परिस्थिति को टालना नामुमकिन है और आनेवाले समय में सौदों के आकार में बढ़ोतरी को कोई संभावना नहीं है क्योंकि बाजार में कदम रख रहे क्लाइंट वैकल्पिक सौदों की और अपना ध्यान देना जारी रखेंगे।
इस बारे में के पीएमजी, आईसीई केप्रमुख राजेश जैन का कहना है कि इस समय कंपनियां कारोबार माहौल को देखकर सतर्क रवैया अख्तियार किए हुए हैं और छोटी और बड़ी दोनों कंपनियां किसी भी हाल में अपने क्लाइंट को अपने पास रखना चाहती है।
एक विश्लेषक के अनुसार छोटे ग्राहकों की खोज कर उसे अपने पास रखने में खास ध्यान देने की जरूरत होती है। हालांकि बड़ी कंपनियां उन क्लाइंटों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रही हैं जोकि अधिक राजस्व अर्जित कर सके और इसलिए नजर हमेशा उन बड़ी वैश्विक कंपनियों पर नजर होती है। उदाहरण केलिए इस तिमाही में टीसीएस 1-50 मिलियन डॉलर वाले खंड में 32 क्लाइंटों को जोड़ पाने में सफल रही।