संकटग्रस्त कंपनी रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग की समाधान योजना के तहत आई बोलियों ने सबको अचंभित कर दिया है। इस कंपनी के कर्जदाताओं को उनकी कुल बकाया रकम 12,500 करोड़ रुपये में 4 प्रतिशत से भी कम रकम की पेशकश की गई है। कंपनी ऋण भुगतान करने में असफ ल रही थी जिसके बाद इसके कर्जदाताओं ने उसे ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के तहत समाधान योजना के लिए भेजा था। रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग दक्षिण गुजरात के तट पर एक शिपयार्ड (जहाजों के मरम्मत की जगह) की मालिक है और इसका परिचालन करती है।
नवीन जिंदल समूह ने मात्र 350 करोड़ रुपये मूल्य की बोली लगाई है। आखिरी क्षण में हेजल मर्केंटाइल वेरिटास समूह ने अनिल अंबानी समूह की इस पूर्व कंपनी के लिए 800 करोड़ रुपये की बोली सौंपी है। बैंकिंग उद्योग के एक सूत्र ने बताया कि अगर कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) हेजल की पेशकश स्वीकार करती है तब भी कंपनी के कर्जदाताओं को (कुल कर्ज का) महज 6.4 प्रतिशत हिस्सा ही मिल पाएगा। कर्जदाताओं ने इन बोलियों पर फिलहाल कोई निर्णय नहीं लिया है और अपने अगले कदम के बारे में वे कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।
सूत्र ने कहा कि एपीटी टर्मिनल ने अंतिम बोली नहीं लगाई, जबकि जीएमएस, दुबई ने 500 करोड़ रुपये से कम की बोली लगाई। इतनी कम बोलियां मिलने के बाद रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग उन कंपनियों की फेहरिस्त में शुमार हो गई है, जिनके कर्जदाताओं को कुल बकाया रकम का 5 प्रतिशत हिस्सा ही हासिल हो पाया। वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के मामले में वेदांत समूह की ट्विनस्टार होल्डिंग्स ने मात्र 3,000 करोड़ रुपये की पेशकश की थी, जबकि बकाया रकम 62,000 करोड़ रुपये थी। शिवा इंडस्ट्रीज के मामले में भी आईडीबीआई बैंक के नेतृत्व में बैंकों के समूह को प्रवर्तक से कुल बकाया रकम का 5 प्रतिशत से भी कम हिस्सा लेने के लिए राजी होना पड़ा। हालांकि एनसीएलटी ने शिवा इंडस्ट्रीज की पेशकश स्वीकार करने के संबंध में संबंध बैंकों का आवेदन खारिज कर दिया था।
वीडियोकॉन का मामला एनसीएलएटी और एनसीएलटी में विचाराधीन है। कुछ कर्जदाताओं ने कम रकम स्वीकार करने पर आपत्ति जताई थी। लवासा जैसे कई अन्य मामले भी हैं, जिनमें कर्ज समाधान योजना अब भी विचाराधीन है। संकटग्रस्त कंपनियों के मामले में समाधान योजना के तहत बकाया रकम वसूली की प्रक्रिया में कम रकम मिलने पर न्यायालय कई बार अपने गुस्से का इजहार कर चुका है।
इससे तंग होकर वित्त पर स्थायी समिति ने भी कर्जदाताओं और समाधानकर्ताओं के लिए एक संहिता लाने की सिफारिश की है। समिति ने इस महीने के शुरू में कहा था कि नुकसान सहने की न्यूनतम सीमा होनी चाहिए और यह वैश्विक मानकों के अनुरूप होनी चाहिए। समिति ने कहा कि कर्जदाता 95 प्रतिशत तक नुकसान सहने के लिए तैयार हो रहे हैं जो चिंता का विषय है।