देश भर में फैलते जीका वायरस संक्रमण के बीच हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने कहा है कि वह इसके टीके का मनुष्यों पर दूसरे चरण का चिकित्सकीय परीक्षण शुरू करने जा रही है।
डॉक्टरों ने कहा है कि जीका संक्रमण के लिए जांच सुविधा कम होने के कारण कई मामलों की पहचान नहीं हो पाएगी। उन्हें डेंगू और वायरल बुखार मानकर छोड़ दिया जाएगा क्योंकि इसके लक्षण काफी हद तक उसी के समान हैं। प्रमुख निजी जांच प्रयोगशालाओं ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि वे अपनी जांच सूची में जीका-वायरस को भी शामिल करने की तैयारी कर रही हैं।
भारत बायोटेक ने 2016 में कहा था कि उसने जीका वायरस के लिए दुनिया का पहला टीका जीकावैक बना लिया है। कंपनी ने उस समय कहा था, ‘हम मानते हैं कि हमें जीकावैक विकसित करने में सबसे पहले परीक्षण शुरू करने का फायदा मिला है। शायद हमने जीका वायरस के टीके के वैश्विक पेटेंट के लिए सबसे पहले आवेदन किया है।’उस समय कंपनी दो टीके विकसित करने में जुटी थी। उनमें एक निष्क्रिय टीका था, जो जानवरों में चिकित्सकीय परीक्षण से पहले के चरण में पहुंचा। कंपनी ने जीका के अपने टीके बीबीवी121 पर काम फिर शुरू कर दिया है।
भारत बायोटेक ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘बीबीवी121 (जीका का टीका) सक्रिय उत्पाद विकास के चरण में है और इसके बाद दूसरे चरण का मानव चिकित्सकीय परीक्षण होगा।’
2016 में फाइजर, जॉनसन ऐंड जॉनसन और मर्क जैसी बड़ी दवा कंपनियां जीका का टीका बनाने की सोच रही थीं।
वैश्विक रिपोर्टों के मुताबिक विभिन्न प्लेटफॉर्म- डीएनए-प्लाज्मिड तकनीक, एमआरएनए, अटेन्यूएटेडेट लाइव वायरस, वायरल वैक्टर वैक्सीन पर जीका वायरस के बहुत से टीके तैयार करने का काम चल रहा है। मच्छर से होने वाले फ्लैविवायरस – जीका वायरस को पहली बार 1947 में युगांडा के जीका जंगल में रीसस बंदर के खून से अलग किया गया था। उसके बाद अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में खास तौर पर इस वायरस का संक्रमण फैला है।
2016 की शुरुआत में यह तेजी से फैला। उस समय इसके पुष्ट और संदिग्ध मामले 10 लाख से ऊपर पहुंच गए थे। मगर 2017 से मामले घट रहे हैं।
भारत कभी उन जगहों में शामिल नहीं रहा है, जहां इस वायरस ने महामारी फैलाई है। मगर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया अध्ययन जून में ‘फ्रंटियर इन माइक्रोबायोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ था। इसमें कहा गया कि यह वायरस ‘दबे पांव’ देश भर में फैल रहा है।
2021 में निगरानी से पता चला कि केरल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह वायरस मौजूद है। निगरानी बढ़ाने के बाद उसी साल झारखंड, राजस्थान, पंजाब, तेलंगाना और दिल्ली में भी इसकी मौजूदगी की पुष्टि हुई है। आईसीएमआर के विशेषज्ञों द्वारा नए राज्यों में दर्ज किए गए मामले वायरस के स्थानीय प्रसार का संकेत देते हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि जीका वायरस के मामलों की पहचान में सबसे बड़ी दिक्कत व्यापक पैमाने पर जांच उपकरणों का अभाव है। हैदराबाद के यशोदा हॉस्पिटल्स के कंसल्टेंट फिजीशियन के शशि किरण ने कहा, ‘जीका वायरस की जांच के लिए मुश्किल से ही कोई निजी प्रयोगशाला है। इसलिए अगर हमें कोई मामला संदिग्ध लगे तो भी उसकी पुष्टि मुश्किल है।’ उन्होंने कहा कि वायरल बुखार के बहुत से मामले जांच में डेंगू नेगेटिव आते हैं।
