वैश्विक वित्तीय संकट और नकदी की कमी ने भारतीय निर्माण और इंजीनियरिंग उद्योग जगत की रफ्तार को धीमा कर दिया है।
इसकी वजह से निर्माण और इंजीनियरिंग क्षेत्र की कई कंपनियों की कई बड़ी परियोजनाओं, जिन पर पहले कंपनी विचार कर चुकी थी अब नकदी की कमी या परियोजनाओं की मौजूदा स्थितियों में व्यवहार्यता में कमी के कारण उन्हें टाला जा रहा है।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में ऑर्डरों की संख्या में 52.44 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, जबकि पहली तिमाही में यह इजाफा 136.29 प्रतिशत का था। कंपनियों की ओर से स्टॉक एक्सचेंज को मुहैया कराए गए आंकड़ों के अनुसार 65 कंपनियों को वित्त वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही में लगभग 60,588 करोड़ रुपये के ठेके मिले हैं, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह आंकड़ा 39,745 करोड़ रुपये था।
अप्रैल-जून तिमाही के मुकाबले पिछली तिमाही के दौरान कंपनी को मिले ठेकों में 29.73 प्रतिशत का इजाफा दर्ज हुआ है। वित्त वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में ठेकों में कंपनियों ने 136.3 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया था और वित्त वर्ष 2007-09 की चौथी और आखिरी तिमाही में यह इजाफा 127.55 प्रतिशत था। पिछले वित्त वर्ष की तिसरी तिमाही में ठेकों में वृध्दि की रफ्तार धीमे हो कर 46.48 प्रतिशत रही, जबकि उसी वर्ष की दूसरी तिमाही में यह वृध्दि 155.66 प्रतिशत थी।
उम्मीद है कि बैंकों की ओर से परियोजनाओं के लिए नए कर्ज देने में काफी ज्यादा सावधानी के साथ ठेकों में निकट भविष्य में सुधार होने की संभावनाएं न के बराबर हैं। क्रेडिट सुईस के विशेषज्ञ नीलकांत मिश्रा ने अपने ग्राहकों को दी गई एक रिपोर्ट में कहा है, ‘पिछले दो सप्ताहों में पूरे बैंकिंग तंत्र में ऐसी परिस्थितियां बनी हुई हैं, जहां बैंक नई परियोजनाओं के लिए कर्ज देना नहीं चाहते।’
दूसरी तिमाही में सार्वजनिक या निजी क्षेत्रों की कंपनियों की ओर से दिए गए बड़ी मात्रा में ठेकों का योगदान 45.0 प्रतिशत (पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में 21.1 प्रतिशत) रहा, जबकि विदेशों से प्राप्त हुए ठेकों की संख्या 19.41 प्रतिशत (26.84 प्रतिशत) में गिरावट हुई। बाकी के ठेके या 35.59 प्रतिशत (52.06 प्रतिशत) राज्य या केंद्र सरकारों से मिले।
राज्य सरकारों ने सीमेंस, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल), एचसीसी, बीजीआर एनर्जी और आईसीएसए इंडिया को निर्माण के लिए ठेके दिए। लार्सन ऐंड टुब्रो, एबीबी, बीईएमएल, पुंज लॉयड, मान इंडस्ट्रीज और थर्मैक्स को केंद्र सरकार से ठेके मिले। विदेशी ठेकों में ज्यादातर पश्चिम एशिया के लिए बुनियादी ढांचागत विकास, बिजली उपकरण, तेल पाइप लाइंस और तकनीकी कार्य के लिए मिले।
देश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग कंपनी लार्सन ऐंड टुब्रो ने तिमाही के दौरान मिले ठेकों में 60 प्रतिशत की जबरदस्त वृध्दि दिखाई, लेकिन तिमाही-दर-तिमाही आधार पर विकास दर मामूली सी 2 प्रतिशत बढ़ी। हालांकि पुंज लॉयड ने इस अवधि के दौरान ठेकों की संख्या में 160 प्रतिशत वृध्दि दर्ज की और यही उसका प्रतिशत तिमाही-दर-तिमाही आधार पर भी बना रहा।
देश की सबसे बड़ी बिजली उपकरण निर्माता कंपनी बीएचईएल को मिले ठेकों में साल-दर-साल और तिमाही-दर-तिमाही आधार पर 18 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली। निर्माण और इंजीनियरिंग कंपनियों को 27 ठेके मिले, जो दूसरी तिमाही में मिले कुल ठेकों के लगभग 47 फीसदी हैं।
कई इंजीनियरिंग और निर्माण क्षेत्र की कंपनियों ने कई बड़ी कंपनियों के साथ करार किए और इसलिए उन पर अभी तक ज्यादा असर देखने को नहीं मिला। क्रेडिट सुईस की रिपोर्ट के अनुसार इन कंपनियों पर कर्ज की शर्तों का मामूली असर पड़ा है, क्योंकि ये बड़ी मात्रा में ईंधन खरीदती हैं और आपूर्तिकर्ता दो महीने की उधारी की सुविधा देते हैं, लेकिन अब यह .50 प्रतिशत या .75 प्रतिशत अधिक महंगा मिलता है।
बिजली उपकरण संयंत्रों की कुल ठेकों में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इस क्षेत्र में मांग की कोई चिंता नहीं है। हालांकि इस क्षेत्र में भी कई बड़े संयंत्रों की परियोजनाओं को पूंजी की कमी या उसके महंगे होने की वजह से टालने के प्रमाण मिले हैं। बिजली संयंत्र लंबे समय की मांग को देखते हुए बनाए जा रहे हैं, इसलिए इनकी योजनाओं में बेहद मामूली सा बदलाव है। हालांकि हो सकता है कि पूंजी की कमी के चलते कुछ प्रतिस्पर्धी परियोजनाओं को कुछ समय के लिए टाल दिया जाए।