भारत का चीनी खिलौनों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) द्वारा परिभाषित अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून के अनुरुप नहीं है।
कारोबार विशेषज्ञ और वकीलों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस मुद्दे पर अगर चीन डब्ल्यूटीओ में भारत को कटघरे में खड़ा करता है, तो भारत के लिए इस प्रतिबंध को न्यायसंगत ठहराना टेढ़ी खीर साबित हो जाएगा।
हालांकि इस प्रतिबंध से भारत के खिलौना निर्माताओं को कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि उन्हें अपने खोए बाजार पर फिर से काबिज होने का मौका मिल जाएगा।
दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ ने कहा, ‘इस तरह के प्रतिबंध को आरोपित करने के कुछ तरीके और नियम होते हैं। लेकिन भारत ने चीन के खिलौने के आयात पर जो प्रतिबंध लगाया है, वह इन नियमों पर खड़ा नहीं उतरता है।’
इस प्रतिबंध को लेकर 23 जनवरी को निर्देश जारी किया गया था, जिसमें यह कहा गया था कि चीन के खिलौने पर प्रतिबंध लोगों के हितों को ध्यान में रखकर उठाया जा रहा है।
इस निर्देश में यह भी कहा गया था कि यह प्रतिबंध छह महीने तक प्रभावी रहेगा। हालांकि यह कभी बताने की कोशिश नहीं की गई कि आखिर किस आधार पर चीनी खिलौने के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया।
दुनिया के आधे से बड़े खिलौने बाजार अमेरिका, यूरोप और जापान में आर्थिक मंदी की वजह से यह उद्योग सिमटने लगा है और इसी को देखते हुए यह प्रतिबंध लगाया गया है। जिन देशों को निर्यात कम होने की वजह से झटका लगा है, वे इस तरह का प्रतिबंध आरोपित कर रही है।
अगर डब्ल्यूटीओ का विवाद निपटान पैनल इस प्रतिबंध को न्यायसंगत नहीं पाएगा, तो हो सकता है कि यह प्रतिबंध हटाना पड़े। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस बाबत चीन से किसी तरह की सूचना उन्हें नहीं मिली है।
वाणिज्य सचिव गोपाल के. पिल्लई ने हाल ही में कहा था, ‘हम एक प्रक्रिया के तहत ऐसा कर रहे हैं। अगर वे इस बात पर परामर्श लेना या देना चाहे, तो हम उसके लिए तैयार हैं।’ मंत्रालय मानती है कि भारत उन प्रतिबंधों को आरोपित कर सकती है, जो देश हित में हो।
ऐसा भी माना जा रहा है कि यह प्रतिबंध घरेलू खिलौना कारोबारी को फायदा पहुंचाने के लिए लगाया गया है। भारत के घरेलू खिलौना बाजार का आकार 3000 से 3500 करोड़ रुपये का है। घरेलू कारोबारी यह शिकायत कर रहे थे कि सस्ते चीनी खिलौने की वजह से उनका कारोबार प्रभावित हो रहा है।
हानुंग ट्वॉयज ऐंड टेक्सटाइल के प्रमुख प्रबंध निदेशक ए. के. बंसल ने कहा, ‘यह प्रतिबंध घरेलू कारोबारी को फायदा पहुंचाने के लिए लगाया गया है।’ उद्योग अनुमान के मुताबिक खिलौना उद्योग का मात्र 20 से 25 फीसदी ही संगठित है। बंसल कहते हैं कि असंगठित क्षेत्र के खिलौना कारोबारी सस्ते चीनी खिलौने की वजह से अपना बाजार हिस्सा खो रहे थे।