आमदनी के हिसाब से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी रक्षा क्षेत्र की कंपनी बीएई सिस्टम्स भारत में अपना बिक्री केंद्र खोलने की योजना बना रही है।
इसके जरिये अमेरिका और ब्रिटेन के सैनिक साजो सामान की बिक्री की जाएगी या स्थानीय कंपनी की मदद से सेना के लिए रक्षा सामान का उत्पादन किया जाएगा।
कंपनी इस बाबत उन तकनीकों को विकसित करना चाहती है, जो भारतीय रक्षा क्षेत्र की जरूरतों के मुताबिक हो। कंपनी लंबी अवधि तक निर्यात आधार बनाने की रुपरेखा पर भी काम कर रही है। यह कंपनी भारतीयों द्वारा ही चलाया जाएगा।
बीएई इंडिया के अध्यक्ष जुलियन स्कोप्स ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि 26 फीसदी विदेशी निवेश के अलावा जो कंपनियां भारत में बेहतर तकनीक लाना चाहती है, उसके लिए किसी विशेष छूट या सुविधाओं का प्रावधान नहीं किया गया है।
बीएई की महिन्द्रा डिफेंस सिस्टम्स के साथ संयुक्त उपक्रम बनाने के लिए 49 फीसदी की हिस्सेदारी रखने की मनसा पर सरकार ने रोक लगा दी। पिछले महीने बीएई और महिन्द्रा के बीच हुए समझौते के तहत बीएई को 26 फीसदी हिस्सेदारी मिली।
स्कोप्स ने कहा कि वे मौजूदा हिस्सेदारी से संतुष्ट हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि मौजूदा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की सीमा भारत के लिए बुरा है। उन्होंने कहा, ‘हमलोग भारत सरकार के संबद्ध विभागों से इस मसले पर बातचीत कर रहे हैं।’
अभी बीएई इंडिया सिस्टम्स की कुछ परियोजना अधर में लटकी हुई है। जिसमें महिन्द्रा के साथ संयुक्त वेंचर का परिचालन कर 155 मिमी होवित्जर के लिए बोली लगाने की परियोजना भी शामिल है। भारत को 57 एडवांस्ड जेट ट्रेनर्स (हॉक) की जरूरत है।
हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ बीएई के समझौते के तहत 23 जेट की आपूर्ति कर दी गई और लाइसेंस के तहत एचएएल 42 जेट का निर्माण करेगी। हालांकि स्कोप्स ने कहा कि देरी की वजह से परिचालन में बाधा आ रही है।
बीएई ऑस्ट्रेलिया में भी इसी तरह की तैयारी कर रही है, जिससे वह दुनिया की सबसे बड़ी रक्षा कंपनी बन गई है। स्कोप्स ने कहा कि इसी तरहा का समझौता भारत के साथ भी जल्द ही किया जाएगा। इस समझौते के बाद तकनीक के आदान प्रदान में निर्देशों की बाधाएं आड़े नहीं आएगी। इसके अलावा इससे घरेलू आपूर्ति श्रृंखला बनाने में मदद मिलेगी। इससे बीएई भारतीय रक्षा बाजार में भी अपनी पैठ मजबूत कर लेगी।
बीएई अमेरिका के साथ साथ ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन, सउदी अरब और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में अपनी उपस्थिति बनाए हुई है। पिछले साल कंपनी ने ऑस्ट्रेलिया में 1 अरब डॉलर निवेश किया था।
