दुनिया भर में छाई मंदी की मार का असर भारतीय विमानन कंपनियों पर भी पड़ा है।
विमानन कंपनियों को राहत देने के लिए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत कम होते ही विमान ईंधन (एटीएफ) की कीमत भी घटा दी। लेकिन इन सभी रियायतों के बाद भी अगर एटीएफ की कीमत की बात की जाए तो यह पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है।
भारत में अगर एटीएफ पर लगने वाले कर और शुल्क शामिल नहीं किए जाएं तो भी इसकी कीमत सिंगापुर और कुआलालंपुर की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक है। इस बाबत विमानन उद्योग के जानकारों का मानना है कि केरोसिन और रसोई गैस में सब्सिडी देने के कारण हो रहे घाटे की भरपाई तेल कंपनियां विमान ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी से वसूलने की कोशिश कर रही हैं।
अगर विमान ईंधन पर लगाए गए करों और शुल्कों को जोडा जाए तो उस स्थिति में विमान ईंधनों का खुदरा मूल्य दिल्ली और मुंबई में करीब 60 प्रतिशत महंगा हो जाता है। गौरतलब है कि सरकार द्वारा जेट ईंधन पर लगनेवाले सीमा शुल्क में कटौती करने और पिछले तीन महीनों में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने के बाद भी विमान ईंधन की कीमतों में लगातार तेजी आ रही है।
देश में एटीएफ की कुल खपत का लगभग 50 फीसदी एटीएफ की आपूर्ति करने वाली सरकारी तेल कंपनी इंडियन ऑयल के एक अधिकारी ने बताया कि विमान ईंधन पर मिलने वाला क्रॉस सब्सिडाइजेशन काफी कम है और इससे हमें लंबे समय तक राहत नहीं मिलेगी।
एटीएफ का आधार मूल्य (तेल शोधक कारोखानों में तेल की कीमतें जिसमें कि कर और मार्जिन शामिल नहीं होता है) करीब 30.21 रुपये प्रति लीटर है। जहां तक सिंगापुर ,क्वालालांपुर और अबुधाबी में आधार मूल्य का सवाल है तो यह करीब 27.50 रुपये प्रति लीटर है।
दरअसल भारत में आधार मूल्य की गणना आयात में समतुल्यता के आधार पर होती है जिसमें कि शिपिंग कॉस्ट और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार किए जानेवाले एटीएफ की कीमत को बीमा में शामिल किया जाता है।
हालांकि भारतीय तेल शोधक और ईंधन कारोबारी कंपनियां एटीएफ का आयात नहीं करती हैं। इसीलिए इस कीमत में शिपिंग कॉस्ट और बीमा खर्च वास्तविक तौर पर जोडा नहीं जाता है और अंतिम आधार मूल्य पर ईंधन के कारोबारी मुनाफा कमाते हैं।
कर से बढ़ी कीमत
भारत में एटीएफ पर 8 प्रतिशत का उत्पाद शुल्क और काउंटरवेलिंग डयूटी लगती है और इसके अलावा स्थानीय सराकर 20-30 प्रतिशत केआसपास कर लगाती है। इससे अंतिम रूप से बेचे जाने वाले एटीएफ की कीमतों में आधार मूल्य से करीब 50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो जाती है।
इसकी तुलना में सिंगापुर, मलेशिया और दुबई में अंतिम कीमतें आधार मूल्य से केवल 5 प्रतिशत ही अधिक होती हैं। सिंगापुर और क्वालालंपुर जैसे शहरों में जेट ईंधन पर लगनेवाला कुल कर 5 प्रतिशत से अधिक का नहीं होता है।
अगर दिल्ली की बात करें तो कर और शुल्क के अंतिम मूल्य 32 प्रतिशत अधिक हो जाता है। देश की विमान कंपनियां सरकार से जेट ईंधन पर अपेक्षाकृत कम कर लगाने की मांग कर रही है जिससे कि कीमतों में कमी आएगी और कंपनियों को अपने कारोबार में इसका फायदा होगा।
गौरतलब है कि जैसे ही भारत में अगस्त 2007 से अगस्त 2008 में जेट ईंधनों की कीमतों में बढोतरी हुई वैसे ही विमानन कंपनियों ने ईंधन की कीमतों में होनेवाले घाटे की पूर्ति के लिए यात्री किराए में बढ़ोतरी करने का ऐलान कर दिया। बढ़ती महंगाई में टिकट के दाम बढ़ने के कारण विमान से यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या में कमी आई।
विमानन कंपनियों की आमदनी पर भी इसका प्रतिकूल असर देखा गया। इस साल अगस्त के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट के बाद तेल कंपनियों ने जेट ईंधन की कीमतों में 36 प्रतिशत तक की कटौती की है। लेकिन एटीएफ की कीमत कम होने के बाद भी किराया नहीं घटा है।