एबीजी शिपयार्ड द्वारा बैंकों के 23,000 करोड़ रुपये के ऋण की अदायगी में चूक के मामले में सीबीआई की जांच जारी है। कंपनी के ऑडिटर ने 2019 में मामूली निपटान शुल्क का भुगतान करते हुए बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा शुरू की गई जांच को निपटा दिया था। बाजार नियामक ने एबीजी शिपयार्ड से रकम के हस्तांतरण की जांच शुरू की थी और ऑडिटर से पूछा था कि उन्होंने ऑडिट के दौरान रकम हस्तांतरण को उजागर करने में विफल क्यों रहे।
अपने निपटान आवेदन में चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म निसार ऐंड कुमार के ऑडिटर एमएन अहमद ने कहा कि वह एक भारतीय नागरिक बन गए हैं और अब पेशे से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
सीबीआई द्वारा की जा रही रकम हस्तांतरण की जांच में ऑडिटर की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण है। जांच एजेंसी एबीजी शिपयार्ड द्वारा बैंकों के 23,000 करोड़ रुपये के डिफॉल्ट मामले की जांच कर रही है। सत्यम घोटाले में बाजार नियामक सेबी ने उसके ऑडिटर प्राइस वाटरहाउस पर जनवरी 2018 में दो साल के लिए ऑडिट पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन सितंबर 2019 में प्रतिभूति एवं अपीलीय ट्रिब्यूनल (सैट) ने सेबी के आदेश को खारिज कर दिया था।
एबीजी शिपयार्ड मामले में बाजार नियामक ने 2008 से 2014 के बीच एबीजी शिपयार्ड से सेकेंड लैंड डेवलपर्स (बाद में एबीजी रिसोर्सेज) को 101 करोड़ रुपये के हस्तांतरण के संबंध में अहमद को नोटिस जाारी किया था। इस रकम हस्तांतरण से प्रवर्तकों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया था।
जांच से पता चला कि एबीजी ने वस्तुओं की वास्तविक बिक्री के बजाय कुछ कंपनियों से खरीद बिल हासिल की थी और बहीखातों में उसका गलत तरीके से उल्लेख किया था। सेबी ने कहा कि निसार ऐंड कुमार वित्त वर्ष 2008 से वित्त वर्ष 2016 के बीच एबीजी शिपयार्ड की वैधानिक ऑडिटर फर्म थी। उसने ऑडिट रिपोर्ट और कंपनी प्रशासन संबंधी प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर किए थे।
वही ऑडिट फर्म साल 2009 से 2013 के दौरान सेकेंड लैंड डेवलपर्स की वैधानिक ऑडिट फर्म भी थी। वित्त वर्ष 2009-10 और वित्त वर्ष 2011 से 2013 के दौरान उसके ऑडिट रिपोर्ट पर क्रमश: अहमद और रचना अग्रवाल द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे।
सेबी ने पाया कि फर्म ने बिना किसी फेरबदल वाली ऑडिट रिपोर्ट जारी की थी जिसमें एबीजी और उसके हितधारकों के बीच वास्तविक स्थिति को छिपाया गया था। सेबी की जांच के दौरान अहमद अपनी उपस्थिति दर्ज करने में विफल रहे और उन्होंने बाजार नियामक को कोई दस्तावेज अथवा जानकारी उपलब्ध नहीं कराई। अपने निपटान आवेदन में अहमद ने कहा कि कथित डिफॉल्ट का बाजार पर कोई व्यापक प्रभाव नहीं पड़ा और इससे कोई अवैध लाभ नहीं हुआ। उसके बाद सेबी ने मामले को निपटाने के लिए अहमद को 27.5 लाख रुपये बतौर निपटान शुल्क भुगतान करने के लिए कहा था।
इस बाबत जानकारी के लिए निसार ऐंड कुमार को भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं आया।
मार्च 2016 में समाप्त वित्त वर्ष के लिए वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि ऑडिटर ने एबीजी शिपयार्ड द्वारा सहायक कंपनियों और संबंधित पक्षों में 220 करोड़ रुपये के निवेश के बारे में सवाल उठाए थे। ऑडिटर रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेशित कंपनियों के अंकेक्षित वित्तीय विवरण की उपलब्धता के अभाव में वह इन निवेश के लिए यह पता लगाने में असमर्थ है कि क्या इसके लिए कितने प्रावधान की आवश्यकता है।
