अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) की सूचीबद्ध कंपनियों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी विभिन्न वर्षों में लगातार घटती रही जब लेनदारों ने कर्ज भुगतान में चूक के बाद गिरवी शेयर भुनाने शुरू कर दिए।
रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर में प्रवर्तक हिस्सेदारी इस साल सितंबर के आखिर में घटकर 5 फीसदी रह गई, जो मार्च 2018 में 48.4 फीसदी रही थी। रिलायंस इन्फ्रा की हिस्सेदारी अपनी सहायक रिलायंस पावर में घटकर इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 25 फीसदी रह गई, जो मार्च 2018 में 75 फीसदी रही थी।
प्रवर्तक अनिल अंबानी परिवार रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर में शेयरोंं के तरजीही आवंटन के जरिये 550 करोड़ रुपये निवेश पर सहमत हुए थे, इस तरह से कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 25 फीसदी कर देंगे, जब यह पेशकश पूरी हो जाएगी। इसके बदले रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर अपनी हिस्सेदारी रिलायंस पावर में बढ़ाकर 38 फीसदी कर देगी, जब उसके वॉरंट को परिवर्तित कर दिया जाएगा।
रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर में अंबानी की हिस्सेदारी घट गई जब लेनदारों ने गिरवी शेयर भुनाते हुए उन्हें बाजार में बेच दिया। आंकड़े बताते हैं कि 72 फीसदी हिस्सेदारी खुदरा निवेशकों और एचएनआई के पास है।
हाल में आरबीआई ने रिलायंस कैपिटल के बोर्ड को भंग कर प्रशासक नियुक्त किया है, उसमें प्रवर्तक हिस्सेदारी दूसरी तिमाही में घटकर 1.5 फीसदी रह गई, जो मार्च 2018 में 52 फीसदी रही थी।
आरबीआई के कदम के साथ सार्वजनिक शेयरधारक नुकसान उठाएंगे, जिनके पास अभी 85 फीसदी हिस्सेदारी है। दो अन्य कंपनियां रिलायंस कम्युनिकेशंस और रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग दिवालिया प्रक्रिया का सामना कर रही हैं और उनमें भी प्रवर्तक हिस्सेदारी लगातार घठी है क्योंकि उनके वित्तीय मानक कमजोर हुए हैं।
आरकॉम की दिवालिया प्रक्रिया अभी अदालत में लंबित है, वहीं लेनदार रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग के लिए सर्वोच्च बोलीदाता पर फैसला लेने के अंतिम चरण में हैं।
जून में रिलायंस पावर ने ऐलान किया था कि वह अपनी मूल कंपनी को शेयरों के तरजीही आवंटन व वॉरंट के जरिए 1,325 करोड़ रुपये जुटाएगी। रिलायंस इन्फ्रा के ऊपर इस साल मार्च में 14,000 करोड़ रुपये कर्ज था, वहींं रिलायंस पावर पर 24,000 करोड़ रुपये बकाया है।
