भारती एयरटेल की रणनीति कई मायनों में प्रतिस्पर्धी रिलायंस जैसी रही है। ऐसे में पिछले रविवार को जब भारती एयरटेल ने ऐलान किया कि वह 21,000 करोड़ रुपये का राइट्स इश्यू लाएगी तो विश्लेषकों ने कहा कि यह ढांचागत तौर पर पिछले साल जून में पेश आरआईएल के इश्यू जैसी है, जो मुख्य रूप से कंपनी को कर्जमुक्त बनाने के लिए लाया गया था।
कंपनी के शेयरधारकों को रिलायंस की तरह ही आवेदन पर सिर्फ 25 फीसदी चुकाना है और बाकी रकम 36 महीने में चुकाना है जबकि जियो के लिए यह अवधि 17 महीने है। जैसा की बोफा ने कहा है, दोनों कंपनियों के प्रबंधन ने प्रतिबद्धता जताई है कि प्रवर्तक इस इश्यू के अनबिके शेयर खरीदेंगे, जो इसे निश्चितता प्रदान करता है। भारती समूह के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने विश्लेषकों से बातचीत में सोमवार को स्पष्ट किया है कि वह बाजार में मौजूद अग्रणी राइट्स इश्यू मसलन रिलायंस व टाटा की तरह आगे बढ़ रहे हैं। साथ ही यह शेयरधारकों को अपनी रकम पर बेहतर वैल्यू भी दे रहा है।
मित्तल इस मामले में स्पष्ट थे कि राइट्स इश्यू का एक अहम लक्ष्य (अन्य मसलन टैरिफ में इजाफा) दो साल में कर्ज-राजस्व का अनुपात दो साल में घटाने का है। यह मुकेश अंबानी की तरफ से अगस्त 2019 की एजीएम दिए गए भाषण के समान है क्योंकि तब उन्होंने कहा था कि वह अगले 18 महीने में रिलायंस को कर्जमुक्त कंपनी बना देंगे। हालांकि उन्होंने काफी पहले इसे कर दिखाया।
यह कोई पहला अवसर नहीं है जब भारती एयरटेल ने अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनी की रणनीति का अनुकरण किया है। उसने 4जी के मामले में भी इसी तरह की रणनीति पर अमल किया था जिससे उसे पारंपरिक दूरसंचार प्रतिस्पर्धियों से अलग पहचान बनाने में मदद मिली थी।
जून 2010 में रिलायंस ने एचएफसीएल से देश के 22 सर्किल में 2,300 मेगाहट्ïर्ज स्पेक्ट्रम खरीदा था जिसे ब्रॉडबैंड वायरलेस अथवा बीडब्ल्यूए के तौर पर जाना जाता है। यह 4जी सेवाओं को लॉन्च करने के लिए काफी महत्त्वपूर्ण था क्योंकि इसके लिए कहीं अधिक क्षमता अथवा बैंडविड्ïथ की दरकार होती है। सरकार ने हरेक सर्किल में 20 मेगाहट्ïर्ज स्पेक्ट्रम देने की पेशकश की थी जबकि अन्य बैंड में 5 मेगाहट्ïर्ज से अधिक स्पेक्ट्रम न देने का प्रावधान था।
हालांकि वोडाफोन और आइडिया जैसी प्रतिस्पर्धियों को दूर रखा गया था क्योंकि उनका मानना था कि भारत कोई 4जी बाजार नहीं है। यहां तक कि 2013 के आखिर तक वोडाफोन इंडिया के पूर्व सीईओ मार्टिन पीटर्स ने जोर देकर कहा था कि भारत में 4जी के लिए फिलहाल काफी जल्दबाजी है।
जबकि भारती एयरटेल ने ऐसा नहीं किया। उसने 2010 की नीलामी में ही चार सर्किल में बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम खरीदकर अपनी अस्थायी मौजूदगी दिखा दी थी। अलगे कुछ वर्षों के दौरान उसने अपने 4जी स्पेक्ट्रम के दायरे को आक्रामक तरीके से विस्तार किया ताकि देश भर में उसकी मौजूदगी सुनिश्चित हो सके। इस प्रकार वह रिलायंट को टक्कर देने के लिए तैयार हुई।
साल 2012 और 2017 के बीच भारती एयरटेल ने क्वालकॉम, एयरसेल और तिकोना डिजिटल से बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम खरीदा था जो विभिन्न सर्किल में दूसरे पायदान पर थे। इतना ही नहीं, वह 2012 में कोलकाता जैसे शहरों में 4जी सेवा शुरू करने में रिलायंस से आगे था और उसके बाद बेंगलूरु, पुणे और चंडीगढ़ में सेवाएं शुरू की।
भारती एयरटेल ने अपने बड़े 2जी और 3जी ग्राहक आधार के कारण 4जी सेवाओं को आक्रामक तरीके से आगे नहीं बढ़ाया। उसने तब तक ऐसा नहीं किया जब तक रिलायंस सितंबर 2016 में अपने सभी 4जी नेटवर्क के साथ बाजार में उतर नहींं गई। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि भारती एयरटेल इस जंग में अपने मौजूदा प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले कहीं अधिक तैयार थी।