कपड़ों की रिटेल चेन चलाने वाली कंपनी कूटन्स गर्म कपड़ों पर दे रही है 80 फीसदी की छूट। साथ ही, डिजाइनर जीन्स, लेडिज रेंज और किड्वेयर पर दे रही है 70 फीसदी की छूट।
मल्टी ब्रांड डिस्काउंट स्टोर चेन, द ग्रैब स्टोर इंड ऑफ सीजन सेल के तहत दे रही है 69 फीसदी की छूट। आरपीजी ग्रुप की रिटेल चेन स्पेंसर्स और वेलस्पन ग्रुप की रिटेल चेन वेलहोम भी दे रही है 70 प्रतिशत की छूट।
दिनोंदिन गिरती बिक्री की वजह से कपड़ों का कारोबार करने वाली रिटेल चेन कंपनियां के पसीने छूट चुके हैं। इसीलिए तो वे लोगों को लुभाने के लिए 80 फीसदी तक की छूट देने से भी नहीं हिचक रही हैं।
इस तरह ये कंपनियां अपना स्टॉक खाली करने के साथ-साथ दुकानों को चलाने के कुछ पैसे भी उगाहना चाहती हैं। आप कहेंगे कि फरवरी के पहले हफ्ते में सेल के बोर्ड तो आम बात है। लेकिन इस बार खास बात है छूट की मात्रा और छूट की अवधि।
इस बार सेल के बोर्ड जनवरी से ही दुकानों पर टंग गए थे। साथ ही, इस बार रिटेल चेन 25-30 फीसदी ज्यादा छूट दे रहे हैं। उद्योग आंकड़ों में मानें तो अक्टूबर-दिसंबर में सबसे ज्यादा कमाई होती है। मतलब, कुल बिक्री का 40 फीसदी हिस्सा इसी तिमाही से आता है।
लेकिन इस बार रिटेल चेनों की कुल बिक्री में इस सीजन ने सिर्फ 25 फीसदी की हिस्सेदारी की है। टेक्नोपाक एडवाइजर्स के पूणेंदु कुमार का कहना है कि, ‘बिक्री कम होती जा रही है और जमा माल बढ़ता जा रहा है। इसीलिए इस बार आपको ज्यादा छूट मिल रही है। कंपनियों को नया माल खरीदने के लिए पैसे जुटाने हैं। इसलिए वे छूट का सहारा ले रही हैं।’
सेम स्टोर ग्रोथ रेट के घटने की वजह से कपड़ों का कारोबार करने वाली रिटेल चेन कंपनियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सेम स्टोर ग्रोथ रेट के तहत एक साल या इससे ज्यादा वक्त से बाजार में मौजूद स्टोर की बिक्री की तुलना की जाती है।
आर्थिक मंदी और उपभोक्ताओं का बाजार से दूर रहने की कोशिश की वजह से इसमें काफी कमी आ चुकी है। रेटिंग फर्म ‘फिच’ को उम्मीद है कि विकास दर के कम रहने की वजह से इस बार पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले के सेम स्टोर ग्रोथ रेट भी काफी कम रहेगी।
इसका कहना है कि खुद को बचाए रखने की कोशिश के तहत रिटेलरों को ज्यादा छूट देनी पड़ रही है। लेकिन इस वजह से उनके बैलेंस शीट पर इस बार बुरा असर पड़ सकता है। आमतौर पर कपड़ों का कारोबार करने वाली रिटेल चेनों का सकल मुनाफा 30-35 फीसदी के बीच रहता है।
साथ ही, उनके स्टॉक में 60 फीसदी माल पूरी कीमत पर मिलता है। बाकी का 20-25 फीसदी माल छूट पर मिलता है। इस सेक्टर के एक विश्लेषक का कहना है कि, ‘लेकिन अब उन्हें अपने स्टॉक का एक बड़ा हिस्सा छूट पर बेचना पड़ रहा है। इस वजह से उनका मुनाफा 10-15 फीसदी तक ही सिमट कर रह जाएगा।’
एक दूसरे विश्लेषक का कहना है कि, ‘तीसरी तिमाही रिटेलरों के लिए खासी बुरी रही। अगर वक्त इस तरह बरकरार रहा तो उनकी कमाई और भी गिर सकती है।’ लेकिन ऑफरों और विज्ञापनों की वजह से रिटेलरों की अच्छी कमाई की उम्मीद बरकरार है।
फ्यूचर ग्रुप के अध्यक्ष (कस्टमर स्ट्रैटेजी) संदीप तरकश का कहना है कि, ‘हमने कई ऑफरों की शुरुआत की है। साथ ही, हमने इसका भी आकलन कर रखा है कि हमारी बिक्री कितनी होगी और उसका कितना असर होगा। जब भी हम एक ऑफर की शुरुआत करते हैं, तो हम रिटेलरों के साथ समझौता करते हैं या फिर जमा माल बेचने के लिए होता है। जाहिर सी बात है कि हम घाटे में तो नहीं ही बचेंगे।’
वैसे कुछ मामलों में तो रिटेलरों को जितने में माल खरीदा था, उससे भी कम कीमत में समान बेचने पड़ रहे हैं। इसकी एक मिसाल है विशाल रिटेल। कंपनी ने 813 करोड़ रुपये के गर्म कपड़े खरीद रखे थे, लेकिन अब उसे इससे भी कम कीमत में माल बेचना पड़ रहा है।
