रिलायंस कैपिटल के ऋणदाताओं ने शुक्रवार को ऋणशोधन अक्षमता अपील न्यायाधिकरण (NCLAT) के समक्ष कहा कि रिलायंस कैपिटल मामले के समाधान के लिए उनके द्वारा अपनाए गए चैलेंज मैकेनिज्म की प्रक्रिया से कोई बदलाव नहीं हुआ है।
रिलायंस कैपिटल के ऋणदाताओं में शामिल विस्तारा आईटीसीएल (इंडिया) लिमिटेड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि ये प्रयास परिसंपत्तियों का अधिकतम मूल्य करने की दिशा में थे और ऋणदाताओं को मूल्य तय करना है।
इस बीच, बजट में जीवन बीमा कंपनियों का कर प्रोत्साहन हटाए जाने से अधिग्रहण करने वालों के लिए रिलायंस कैपिटल की परिसंपित्तयों की बिक्री अनाकर्षक हो गई हैं। बैंकिंग सूत्रों का कहना है कि बजट के बाद से लिस्टेड बीमा कंपनियों के मूल्यांकन में तीन से 11 प्रतिशत तक की गिरावट आई है, जिससे टॉरंट और हिंदुजा समूह जैसे इसके बोलीदाताओं को नए सिरे से योजना तैयार करनी पड़ रही है।
रिलायंस कैपिटल की परिसंपित्तयों में जीवन बीमा उद्यम में उसकी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी और सामान्य बीमा कंपनी में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी शामिल है। पिछले साल दिसंबर में हुई नीलामी में टॉरंट ने 8,640 करोड़ रुपये की पेशकश की थी, जबकि हिंदुजा समूह ने रिलायंस कैपिटल के लिए 8,100 करोड़ रुपये की पेशकश की थी। लेकिन जब हिंदुजा ने पूरी तरह से नकद सौदे में अपनी बोली बढ़ाकर 9,000 करोड़ रुपये कर दी, तो टॉरंट एनसीएलटी चली गई, जिसने टॉरंट के पक्ष में फैसला सुनाया। यह विवाद अब राष्ट्रीय कंपनी कानून अपील न्यायाधिकरण (NCALT) में लंबित है।
एक बोलीदाता ने कहा कि बजट में अधिक मूल्य वाले जीवन बीमा के लिए कर प्रोत्साहन हटाए जाने से उन्हें हैरानी हुई है। एक बोलीदाता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा ‘1 फरवरी को बजट की घोषणा किए जाने के बाद से सभी जीवन बीमा कंपनियों के शेयर की कीमतों में तेजी से गिरावट आई है क्योंकि निवेशक इस बात से फिक्रमंद हैं कि जीवन बीमा के ग्राहक अन्य विकल्पों पर विचार करेंगे। चूंकि हमारी पेशकश बजट से पहले के आधार पर थी, इसलिए हमें अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा।’
टॉरंट और हिंदुजा दोनों ने ही कोई टिप्पणी नहीं की।
एनसीएलएटी में अपनी याचिका में हिंदुजा समूह ने तर्क दिया है कि चैलेंज राउंड के जरिये शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPV) 8,110 करोड़ रुपये है, लेकिन मूल्यांकन के परिदृश्य में यह केवल 30 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है और एनसीएलटी ने टॉरंट द्वारा प्रस्तुत किए गए एनपीवी को अनुचित महत्त्व प्रदान किया है तथा यह इस बात पर विचार करने में विफल रहा है कि यह एनपीवी कारक संबंधित समाधान योजनाओं में भुगतान अनुपात का परिणाम है।
हिंदुजा का तर्क है कि योजनाओं के अधिकतम मूल्य और व्यावहारिकता के पहलू पर विचार करते समय ऋणदाताओं द्वारा निर्धारित अन्य मानदंड पर विचार किया जाना चाहिए।